इशारे को पहचानों
कहां गर्मी से इतनी तप रही थी धरती।
कहां गर्मी से बेहाल था इन्सान।।
पानी की एक-एक बूंद के लिए देख रहा था आसमां।
कहां अब जल-थल हो गया है।
पानी इतना बरसा की सब जल-मंगल हो गया है।।
कहीं गंगा मइया शहरों के बाजारों में बहने लगी है।
कहीं ज्यादा बरसात से सड़कें धंसने लगी है।।
कहीं बाढ़ की आशंका है बनी हुई।
कभी सोचा है कि मानसून से पहले ही।।
इतनी जल तबाही क्यों है हुई।
अगर समझ सकते हो तो अभी समझ जाओ।
क्या करती है प्रकृति इशारा उसे समझ जाओ।।
बहुत बड़ा हाथ इसमें कलयुगी पाप का है।
कुछ इंसान द्वारा प्रकृति से हो रहा खिलवाड़ है।।
दनादन पेड़ काटे जा रहे हैं।
ग्लोबल वार्मिंग की स्थिति भयंकर होती जा रही है।।
गर्मी पड़ती है तो अति पड़ती है।
सर्दी पड़ती है तो अति पड़ती है।।
बरसात होती है तो जल-थल हो जाता है।
अब भी समय है समझ जाओ यारों।
अपनी प्रकृति को अब भी बचा लो।।
जगह-जगह हरे-भरे पेड़-पौधे लगाओ।
पेड़ों को कटने से बचाओ।।
जितना हो सके प्रदूषण कम करो।
पोलिथीन के प्रयोग को बिल्कुल न कहें।।
अब भी अगर इन बातों को समझ जाओगे।
जितना बिगड़ गया प्राकृतिक संतुलन उसे छोड़ो।।
जो बचा है उसे बचा पाओगे।
Nice
ReplyDeleteThanks a lot.
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