शराब
शराब हूँ, शराब हूँ मैं।
माना खराब हूँ मैं।।
घरों को उजाड़ डालती हूँ।
परिवार तोड़ डालती हूँ।।
फिर भी सब पर मेरा राज है।
शराब हूँ, शराब हूँ मैं।।
मुझे पी कर इंसान अपने गम
भूला डालता है।
स्वर्ग में उड़ने लगता है।।
क्या दिन है, क्या रात उसे पता नहीं।
जब साथ हूँ मैं उसके खुद को
बादशाह इस जहां का समझने लगता है।।
हमने पूछा क्यों तुम इसके दिवाने हो।
जबकि जानते हो, इससे होती है तबाही।।
पीने वाले बोले, इंसान हूँ मैं, मैं भी सुकून
चाहता हूँ।
पीकर इसे सब गम भूलना चाहता हूँ।।
हमने पूछा-कौन सा गम भूलते हो इसे पीकर।
बीवी, बच्चों की जरूरतें इसमें घोलकर पी जाते हो।।
खुद तो नशे के स्वर्ग में रहते हो।
उन्हें तड़पता छोड़ जाते हो।।
पाते हो दो पल का मज़ा, बीमारी उम्र भर की साथ लाते हो।
घर की शांति दूर भगाते हो।।
क्या देती है यह सुख आपको।
एक दिन इससे दरदनाक मौत पाते हो।।
पीने वाला समझता है कि वह शराब पीता है।
पर हकीकत यह है की शराब उसे पीती है।।
अपना गुलाम बना लेती है।
इसलिए ऐ यारों अब भी समय है सुधर जाओ।
यह लत है बुरी इसे अपने से दूर भगाओ।।
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