इस इंसान की जननी मैं।।
फिर क्यों मेरा यह हाल हैं।
मेरा घर से निकलना क्यों मौहाल है।।
एक पुरुष को एक नारी जीवन के हर
स्तर पर प्यार अपना देती हैं।
बचपन में माँ का ममतामय स्नेह।
बहन का साथ।
दोस्त की परवाह।
बीवी का समर्पण।
बताओ कमी कहाँ रह जाती हैं।
फिर क्यों मेरा यह हाल हैं।
मेरा घर से निकलना क्यों मौहाल है।।
घर से निकलते ही नजरों के तीक्ष्ण
बाण मुझ पर कसते हैं।
बस में, ऑफिस में, स्कूल में हर जगह
यह मुझे ही तकते हैं।।
आज का समय तो बहुत ही बुरा
हो चला।
न उमर का लिहाज, न रिश्ते की
मर्यादा।।
तभी तो विधा का मंदिर भी
इससे रहा न अछूता।
भूलो मत जिन्हें आप घूरते हो।
वह भी किसी की बहन, बहू व बेटी हैं।।
तो निकालो समाज से इस शैतान को।
और दो नारी को पूरा सम्मान,
जिसकी वह है हकदार।।
ताकि फिर वो यह न कह सके।
फिर क्यों मेरा यह हाल हैं।
मेरा घर से निकलना क्यों मौहाल है।।
waah kya baat hai..
ReplyDeleteThanks
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