Wednesday, 3 December 2025

(कहानी) "आधी रात का मेहमान "


      दोस्तों, ये कहानी मैंने कभी किसी से शेयर नहीं की… पर आज आपके लिए सुना रही हूँ।ये बात है उस रात की… जब मैं घर पर देर रात कुछ काम कर रही थी। हम एक बिल्डिंग में रहते थे| जिसके Ground Floor पर हमारा घर था.

रात के करीब 1:30 बजे होंगे। पूरा मोहल्ला सन्नाटे में डूबा हुआ था। मैं अपने कमरे में मोबाइल चला रही था। तभी अचानक… डोरबेल बजती है।

पहले तो लगा शायद मुझे गलतफहमी हुई है, पर थोड़ी देर बाद फिर डोरबेल बजी। इस बार लगातार तीन बार… टन! टन! टन!

दिल धड़कने लगा। इतनी रात को कौन आ सकता है?

मैं धीरे-धीरे दरवाज़े की तरफ बढ़ी… peephole से बाहर झाँका —पर बाहर कोई नज़र ही नहीं आया।

अब तो डर और बढ़ गयी।

मैं वापस अपने कमरे में आने ही वाली थी कि अचानक दरवाज़े पर हल्की सी थप-थप होने लगी… कोई था… ज़रूर था।

मैंने हिम्मत जुटाकर दरवाज़ा खोला—और जैसे ही दरवाज़ा खुला… सामने एक छोटा सा बच्चा खड़ा था, 8–9 साल का। गंदी सी बनियान, पैरों में चप्पल नहीं, और चेहरे पर डर।

मैंने पूछा, “बेटा… रात के 2 बजे? तुम यहाँ कैसे?”

बच्चा काँपते हुए बोला—“दीदी… मेरी मम्मी नीचे बेहोश पड़ी हैं… कोई मदद नहीं कर रहा… प्लीज़ चलो।”

मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई। मैं कुछ सोचा और घर पर औरों को जगाया और उसके साथ नीचे भागी।सीढ़ियों के पास, एक कोने में एक औरत सच में बेहोश पड़ी थी। बच्चा उसके पास बैठा रो रहा था।

मैंने तुरंत एंबुलेंस को कॉल किया। डॉक्टर आए, चेक किया… और बोले—“आपने समय पर बुलाया, नहीं तो हालत और खराब हो सकती थी।”

जब उन लोगों को अस्पताल ले जाया जा रहा था, बच्चा मेरी तरफ मुड़ा और बोला—

“दीदी… भगवान आपका भला करे। सबने मना कर दिया था… पर आप आ गए।”

उसकी आँखों में जो भरोसा था… वो आज भी नहीं भूल पाई।और हाँ…उस दिन मुझे समझ आया कि कभी-कभी आधी रात्रि

 का मेहमान डर नहीं… किसी की मदद की पुकार भी होता सकता है।

  मगर एक बात मैं आपसे शेयर करना चाहती हूं कि मैं एकदम ही उस बच्चे के कहने पर नहीं चली गयी बल्कि मैंने अपने घरवालों को भी साथ लिया और ऊपर के Floor वालों को भी बुला लिया था हालांकि वो देर से नीचे आये पर यह सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए एक जरूरी कदम था. 

   क्योंकि यह भी हो सकता था कि यह कोई गैंग होता. इसलिए जो भी करो सोच-समझ कर करो.


                               -: नोट :- 


और दोस्तों…
उस रात की वो घटना तो किसी तरह ख़त्म हो गई।
लेकिन इंसान की नीयत का मैं असली चेहरा…
अगले हफ़्ते समझ पाई।

क्योंकि उसी हफ़्ते मैंने सोचा था कि
“चलो किसी गरीब की मदद करती हूँ… किसी का भला कर दूँ।”
पर जो हुआ… वो मेरी ज़िंदगी का सबसे बड़ा झटका था।

क्योंकि जिस इंसान की मैं मदद करने जा रही थी…

वो असल में… चोर निकली।

लेकिन ये पूरी कहानी,
क्या मैं उसे पकड़ पाई
और कैसे मैं बाल-बाल बची—

ये सब मैं आपको अपनी अगली story blog में बताने वाली हूँ।
मिस मत करना… क्योंकि ये सच्ची घटना है
और शायद आपके साथ भी कभी ऐसा हो सकता है

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