चार दोस्त - आरव, कव्या, मानसी और विक्रम- हर साल किसी नई जगह घूमने जाते थे।
इस बार उन्होंने सोचा कि शहर की भीड़ से दूर, एक पुराना पहाड़ी गाँव ‘खरमाला’ देखा जाए।
गाँव सुनसान था।
न तो सड़क पर कोई दिखाई देता
न किसी घर से धुआँ उठता।
सबसे अजीब बात
गाँव के बीच में एक टूटी हुई घड़ी की मीनार, जिसकी घंटी हवा चलने पर अपने-आप बज जाती थी।
वह लोग एक पुराने गेस्ट हाउस में ठहरे।
मालिक एक बूढ़ा आदमी था, जिसने सिर्फ इतना कहा-
“शाम के बाद बाहर मत निकलना
और अगर घंटी बजे
तो खिड़की मत खोलना।”
चारों हँस दिए। उन्होंने यह बात मजाक में ली
रात के 12 बजे
ट्रिन ट्रिन ट्रिन
घंटी खुद बजने लगी।
कव्या ने कहा, "मैं देखती हूं बाहर कौन है"
और खिड़की की तरफ बढ़ी।
जैसे ही उसने पर्दा हटाया
उसका चेहरा बदल गया।
आँखें फैल गईं।
उसे बोलते नहीं बन रहा था।
“क्या देखा?” आरव ने पूछा।
कव्या कांपते हुए बोली
“नीचे, कोई खड़ा है।
पर पर उसकी परछाई नहीं बन रही।”
तभी बाहर से एक धीमी सी सीटी की आवाज़ आने लगी।
मानसी डरते हुए बोली
“ये कौन कर रहा है?”
अचानक, मोबाइल नेटवर्क बंद।
लाइट बंद।
सिर्फ खिड़की के बाहर किसी के चलने की धीमी footsteps।
विक्रम ने टॉर्च जला कर बाहर की ओर रौशनी की
पर वहाँ कोई नहीं था।
लेकिन मिट्टी पर चार ताज़े गहरे पैरों के निशान थे।
जैसे कोई अभी-अभी खिड़की से हट कर गया हो।
फिर आरव को गेस्ट हाउस के दरवाज़े पर कोई धीरे-धीरे खटखटा रहा था।
टप टप टप
चारों दोस्त चुपचाप एक-दूसरे को देखने लगे।
बाहर से वही बूढ़े मालिक की दबती आवाज़ आई
“दरवाज़ा मत खोलो
वो मैं नहीं हूँ
चारों के होश उड़ गए।
तो फिर खटखटा कौन रहा था?
और तभी
दरवाज़े की कुंडी अपने-आप हिलने लगी।
क्लिक क्लिक
दरवाज़ा किसी ने बाहर से धीरे-धीरे खोलना शुरू कर दिया।
चारों सांस रोके खड़े थे।
दरवाज़ा खुलेगा तो सामने कौन होगा?
जारी रहेगा----
* क्या आप भी जानना चाहते है कि दरवाजे पर कौन था?
* गांव का असली रहस्य क्या था?
🫣 👉अगर हां तो इंतजार कीजिए दूसरे भाग का जल्द ही आएगा

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