Sunday, 7 December 2025

भाग - 2 "एक साया, एक रहस्य......एक नोट"


भाग - 2 "अनजान रक्षक - उस रात का" 

आर्या नोट पढ़कर काँप गई---
“धन्यवाद… तुमने खिड़की नहीं खोली।”

उसकी सांस अटक गई।
वो डर और सोच में डूबी बैठी ही थी कि अचानक उसका फ़ोन बजा।

Unknown Number Calling…
आर्या का दिल ज़ोर से धड़का।
उसने काँपते हाथ से कॉल उठाया—

“ह-हैलो… कौन?”

कुछ सेकंड खामोशी रही।
फिर एक बेहद धीमी, थकी हुई आवाज़ आई—

“डरो मत… मैं clinic के बाहर वाला वही आदमी हूँ।”

आर्या ने घबराकर पूछा—
“तुम नोट क्यों दे रहे थे? रात को मेरी खिड़की के पास कौन आया था?”
वो आदमी बोला—
“मैं तुम्हें डराने नहीं आया था… बचाने आया था।”

आर्या का दिमाग सुन्न पड़ गया।
“बचाने? किससे?”

उधर से आवाज़ टूटी हुई आई—

“कल रात एक आदमी तुम्हारे कमरे के पास घूम रहा था।
तुमने परदा झटके से हटाया था न? उसी समय उसने तुम्हें देखा…
और खिड़की की तरफ बढ़ने लगा।”
आर्या की रगों में सिहरन दौड़ गई।

वो आदमी बोला—

“मैं उसी वक्त वहाँ पहुँचा था।
और सिर्फ़ एक बात कहकर उसे भगा दिया…”

आर्या डरते हुए बोली—
“क्या कहा था तुमने?”

कुछ पल की चुप्पी के बाद उसने कहा—

“मैंने कहा—
ये लड़की अकेली नहीं है… मैं इसका ख्याल रखता हूँ.”

आर्या का दिल एक पल को रुक-सा गया।

वो आदमी आगे बोला—

“मैं वो ही हूँ जो रोज़ सुबह तुम्हें clinic के बाहर देख लेता था।
तुम मरीजों से जिस तरह अच्छे से बात करती हो…
बस वही देखता था।
मैं खामोश रहता था, पर बुरा कभी नहीं चाहता था।”

आर्या ने धीरे से पूछा—
“और वो नोट?”

“ताकि तुम जान सको कि अगर तुम खिड़की खोल देती…
तो शायद वो आदमी अंदर आ जाता।
मैं तुम्हें बस चेतावनी देना चाहता था, डराना नहीं।”

आर्या कुछ देर चुप रही।
वो आदमी बोला—

“अब मैं तुम्हें परेशान नहीं करूँगा।
बस… सुरक्षित रहना।”

और फोन कट गया।
आर्या खिड़की की तरफ देखती रह गई।
डर थोड़ा कम हो चुका था…
पर मन में एक अजीब-सी गर्माहट थी।

कभी-कभी कोई अनजान इंसान,
बिना नाम बताए, बिना पास आए…
बस एक पल में हमारी ज़िंदगी से खतरा भी हटाता है
और चुपचाप किसी परछाई की तरह गायब हो जाता है।

उस रात उसने आखिरी बार खिड़की के बाहर झाँका—
सड़क खाली थी, हवा ठंडी…
लेकिन उसे ऐसा लगा जैसे कहीं दूर…
कोई अब भी उसका ख्याल रख रहा हो।








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