क्या बेटियाँ सचमुच पराई होती है?
हाँ, एक तरीके से देखा जाए तो वह पराई होती है. क्योंकि वह शादी के बाद अपने माँ बाप का घर छोड़ कर चली जाती है. आती भी है तो मेहमानों कि तरह एक या दो दिन के लिए.
लेकिन बेटी तो बेटी होती है. घर पराया हो जाता है. पर बेटी तो शादी के बाद भी अपने माँ-बाप की बेटी ही रहती है. वही लाडली बेटी जो जब पैदा होती है तो खुशियाँ बिखेर देती है.
कुछ दिन पहले मैं अपना facebook देख रही थी. उसमें एक कोटेशन कह लो या एक विचार कह लो मैंने पढा़, उसमें पीछे एक युवती बनी हुई थी और लिखा था कि वह जाब के इंटरवयू के लिए गई तो अफसर ने उससे पूछा:-
अफसर : आप पैसे कमा कर पहला काम क्या करेंगी?
युवती : मैं अपना एक घर बनाऊँगी.
अफसर : क्या आपके पास अपना घर नहीं हैं?
युवती : घर तो है सर पर मान लो कल मेरी शादी हो जाती है और मेरा कभी झगड़ा हो जाता है तो वह कह सकते है हमारे घर से निकल जाओ. और अगर मैं अपने माँ-बाप के घर जाती हूँ तो वह भी यही कहेंगे कि अब तुम्हारा ससुराल ही तुम्हारा घर है और लड़कियाँ अपने ससुराल में ही अच्छी लगती है तब मैं क्या करुंगी इसीलिए सबसे पहले मैं अपना घर लूँगी. ताकि वक्त आने पर वो मेरे काम काम आ सके.
कहने को यह एक विचार था पर सोचो तो इसमें कितनी गहराई है कि एक बेटी जो हमारे घर में पैदा होती है, जिसे हम बड़े प्यार से पालते है हर मुश्किल में उसका साथ देते है परंतु जब उसकी शादी हो जाती है तो उससे ऐसे व्यवहार करते है.
शादी के बाद घरों में झगड़े होते रहते है, सुलह भी हो जाती है पर अकसर ऐसा क्यों होता है कि लड़के वालो का पलड़ा ऊपर रखकर सुलह होती है. वो बच्ची जिस पर चिल्लाने, गुस्सा होने व हाथ उठाने के लिए हम लाख बार सोचते है, तो ससुराल वालों को यह हक हम कैसे आसानी से दे देते है.
इसीलिए अधिकतर मामलों में ससुराल वाले इसी बात का फायदा उठाते है कि लड़की वाले है अपने आप मानेंगे और इसमें हमारे रिश्तेदार भी बहुत अहम भूमिका निभाते है कि लड़की को कितने दिन अपने घर रखेंगे.
हमें चाहिए कि ऐसे मामलों में हमें दोनों पक्षों को ध्यान से सुनना चाहिए. ससुराल वालो को भी यह सोचना चाहिए कि एक लड़की जो अकेले आपके घर आती है, जब आप सबको उसे अपनाने में थोड़ी कठिनाई होती है तो उसे तो आप सबको अपनाना है. इसलिए उसे थोड़ा समय और बहुत प्यार दें. क्योंकि प्यार और इज्जत देने पर हमेशा ज्यादा ही वापिस मिलती है.
और सभी माँ-बाप से अनुरोध है कि अपनी बेटियों का साथ दें उन्हें अकेला न छोड़े.
हाँ, इतना जरुर करें कि उन्हें इतना सक्षम जरुर बनाए कि वह अपनी समस्याओं को प्यार व इज्जत से सुलझा सके पर जब उन्हें मदद की जरूरत हो तब उनके लिए जरुर खड़े हो.
क्योंकि बेटियाँ पराई नहीं होती, हमारा यह व्यवहार उन्हें
पराया कर देता है.
हाँ, एक तरीके से देखा जाए तो वह पराई होती है. क्योंकि वह शादी के बाद अपने माँ बाप का घर छोड़ कर चली जाती है. आती भी है तो मेहमानों कि तरह एक या दो दिन के लिए.
लेकिन बेटी तो बेटी होती है. घर पराया हो जाता है. पर बेटी तो शादी के बाद भी अपने माँ-बाप की बेटी ही रहती है. वही लाडली बेटी जो जब पैदा होती है तो खुशियाँ बिखेर देती है.
कुछ दिन पहले मैं अपना facebook देख रही थी. उसमें एक कोटेशन कह लो या एक विचार कह लो मैंने पढा़, उसमें पीछे एक युवती बनी हुई थी और लिखा था कि वह जाब के इंटरवयू के लिए गई तो अफसर ने उससे पूछा:-
अफसर : आप पैसे कमा कर पहला काम क्या करेंगी?
युवती : मैं अपना एक घर बनाऊँगी.
अफसर : क्या आपके पास अपना घर नहीं हैं?
युवती : घर तो है सर पर मान लो कल मेरी शादी हो जाती है और मेरा कभी झगड़ा हो जाता है तो वह कह सकते है हमारे घर से निकल जाओ. और अगर मैं अपने माँ-बाप के घर जाती हूँ तो वह भी यही कहेंगे कि अब तुम्हारा ससुराल ही तुम्हारा घर है और लड़कियाँ अपने ससुराल में ही अच्छी लगती है तब मैं क्या करुंगी इसीलिए सबसे पहले मैं अपना घर लूँगी. ताकि वक्त आने पर वो मेरे काम काम आ सके.
कहने को यह एक विचार था पर सोचो तो इसमें कितनी गहराई है कि एक बेटी जो हमारे घर में पैदा होती है, जिसे हम बड़े प्यार से पालते है हर मुश्किल में उसका साथ देते है परंतु जब उसकी शादी हो जाती है तो उससे ऐसे व्यवहार करते है.
शादी के बाद घरों में झगड़े होते रहते है, सुलह भी हो जाती है पर अकसर ऐसा क्यों होता है कि लड़के वालो का पलड़ा ऊपर रखकर सुलह होती है. वो बच्ची जिस पर चिल्लाने, गुस्सा होने व हाथ उठाने के लिए हम लाख बार सोचते है, तो ससुराल वालों को यह हक हम कैसे आसानी से दे देते है.
इसीलिए अधिकतर मामलों में ससुराल वाले इसी बात का फायदा उठाते है कि लड़की वाले है अपने आप मानेंगे और इसमें हमारे रिश्तेदार भी बहुत अहम भूमिका निभाते है कि लड़की को कितने दिन अपने घर रखेंगे.
हमें चाहिए कि ऐसे मामलों में हमें दोनों पक्षों को ध्यान से सुनना चाहिए. ससुराल वालो को भी यह सोचना चाहिए कि एक लड़की जो अकेले आपके घर आती है, जब आप सबको उसे अपनाने में थोड़ी कठिनाई होती है तो उसे तो आप सबको अपनाना है. इसलिए उसे थोड़ा समय और बहुत प्यार दें. क्योंकि प्यार और इज्जत देने पर हमेशा ज्यादा ही वापिस मिलती है.
और सभी माँ-बाप से अनुरोध है कि अपनी बेटियों का साथ दें उन्हें अकेला न छोड़े.
हाँ, इतना जरुर करें कि उन्हें इतना सक्षम जरुर बनाए कि वह अपनी समस्याओं को प्यार व इज्जत से सुलझा सके पर जब उन्हें मदद की जरूरत हो तब उनके लिए जरुर खड़े हो.
क्योंकि बेटियाँ पराई नहीं होती, हमारा यह व्यवहार उन्हें
पराया कर देता है.
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