Friday 2 August 2019

महिला सुरक्षा। एक बहुत बड़ा सवाल।

नोट:- कृप्या यह article पूरा पढ़ें। अगर कोई बात बुरी लगे तो क्षमा प्रार्थी हूं।

नमस्कार मित्रों,
        आज मैं अपने समाज के एक बेहद ज्वलनशील विषय पर बात कर रही हूं-महिला सुरक्षा। क्या आज की इस 21वीं सदी के हमारे समाज में महिलाएं सुरक्षित है या नहीं ? इसका जवाब आप सब जानते है। आज अगर समाज की बात की जाए तो महिला क्या छोटी-छोटी बच्चियां, बुर्जग महिलाएं भी सुरक्षित नहीं है। क्योंकि आए दिन समाचार पत्रों में बच्चियों के साथ, कहीं बुर्जग महिलाओं के साथ बुरा हो रहा है।
        आखिर इसके लिए कौन जिम्मेदार है। हमारी कानून व्यवस्था या कोई और। इसी मुद्दे को लेकर कई बार युवा पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी के बीच बहस छिड़ जाती हैं। जब एक पुरानी पीढ़ी के लोग इन सब चीजों के लिए महिलाओं की वेषभूषा व देर रात घूमने पर ऐतराज करती हैं।
       इस पर युवा पीढ़ी का तर्क होता हैं कि जब एक छोटी सी बच्ची के साथ बुरा होता है तो उसने कौन से छोटे कपड़े पहने होते हैं या कौन सा वह रात को घर से बाहर निकली थी।
       बिल्कुल सही तर्क है इस पीढ़ी का। लेकिन अब अगर उनसे पूछा जाए कि  दामिनी केस के बाद, और आसिफा केस के बाद, इसके लिए कानून बहुत कड़े बना दिए गए हैं। और आसिफा केस के बाद तो मोदी जी ने कानून निकाला था "कि छोटी बच्चियों के साथ कहीं अगर कोई बुरा काम करता है तो सजा-ए-मौत की सजा है। अब आप बताएं इतने सख्त कानूनों के बावजूद क्या इन अपराधों में कमी आई है?  अफसोस की बात है नहीं आई है।
        इसका कारण कानून का ढीलापन है  साथ ही लोगों में एक दूसरे की मदद न करने की भावना है। इस बात पर मैं बाद में आऊंगी। पहले हम बात करते हैं कि लोगों का कहना कि कपड़े इन सब चीजों के लिए जिम्मेदार हैं। इस पर मैं कुछ कहना चाहती हूं अगर किसी को बुरा लगे तो तहे दिल से माफी।
   * आज की पीढ़ी बुरा न मानें आज के समय में भी हम महिलाएं अपने घर के पुरुष सदस्यों से अपने छोटे-छोटे कपड़े छिपा कर रखते हैं
** और अगर उन जैसे छोटे कपड़े पहन कर बाहर निकलेंगे तो लोग खासकर पुरुष वर्ग आप को कैसे देखेगा? क्या प्रतिक्रिया करेगा?

* हमने कुछ समय पहले एक फिल्म देखी थी बाहुबली उसमें एक सीन में कहा गया था कि औरत पर हाथ डालने वाले का, हाथ नहीं बल्कि काटना चाहिए गला।
   सच  मानिए डायलाग के बाद हाल में वो सीटियां और तालियां बजीं की पूछो नहीं। और जब फिल्म खत्म हुई तो यह वही भीड़ थी जो भीड़ का फायदा उठा रही थी। यह तो हाल था  कई बार तो मंदिरों में भी लोग भीड़ का फायदा उठाते हैं।
--**-- यहां यह बताने का आशय है मेरा कि जब समाज में बुराई फैली हो तो खुद ही बच कर चलना पड़ता है। जो आपको आपके कपड़ों वाली समय के लिए कहा जाता है। उसके बारे में ठण्डे दिमाग से सोचिए।

     मान लीजिए आग लगी हुई है उसके पास से जाना है। आप सब जानते है कि रेशमी कपड़ा आग जल्दी पकड़ता है जबकि सूती कपड़ा सुरक्षित होता है। तो आप ही बताइए कि आपको अगर कोई सूती कपड़े पहनने की सलाह देता है तो उसमें बुराई क्या है। क्या इस समय भी आप रेशमी कपड़ा पहनेंगी। और ज़ोखिम उठाएंगी।
 
     यही हाल हमारे समाज का है इसमें गंदगी इतनी फैल चुकी है कि कहने की बात नहीं। इसलिए आप लोगों को कुछ पहनने  से नहीं रोका जाता बल्कि सावधान रहने को कहा जाता है। आज सूट पहनने वाली महिलाओं से भी छेड़छाड़ करते हैं तो छोटे कपड़ों वालों के लिए उनकी सोच क्या होगी। इसलिए भड़कने की बजाय बात की गहराई को समझें।
   
      **अब बात आती है कि इस पर रोक क्यों नहीं लगती। इसके लिए भी काफी हद तक हम ही जिम्मेदार हैं। ऐसे मामलों में कानून तो बाद में आता है। क्या हम अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं। यहां मैं दो घटनाओं का उल्लेख करना चाहती हूं। दोनों के बारे में news में बताया गया था।
1-  इसमें एक भरी हुई बस में एक लड़की के सामने एक आदमी अश्लील हरकत करता रहा। सब लोग देख रहे थे। परंतु किसी ने भी विरोध नहीं किया। हार कर उस लड़की ने शोर मचाया और बस से उतर गई। बाद में उसने पुलिस complaint भी की।

2-  अभी हाल ही में गुरूग्राम  metro station पर एक आदमी ने फिर ऐसी अश्लील हरकत एक महिला के सामने की। वह शोर मचाती रही। परंतु किसी ने भी उसका साथ नहीं दिया। उसने भी police complaint लिखवाई। क्योंकि वह चाहती थी कि उस आदमी को सजा मिले।
      अब इन दोनों घटनाओं में समानता क्या थी। एक तो दो महिलाओं के साथ बदतमीजी की गई।
      और दूसरी दोनों स्थितियों में उनका किसी ने भी साथ नहीं दिया।
    और सच मानिए यह जो दूसरी समानता है यही सबसे बड़ा कारण है इस तरीके के अपराधों को बढ़ावा देने का। क्योंकि उन व्यक्तियों को यह अच्छी तरीके से पता है कि कोई उन्हें कुछ नहीं कहेगा। तभी उन्हें डर भी नहीं हैं।
    सबसे अधिक शर्म की बात तो यह है कि वहां उपस्थित किसी भी पुरुष ने तो उसका साथ नहीं दिया। परंतु वहां जो महिलाएं थीं वह भी चुप चाप तमाशा देख रही थी।
      शायद वह सोचती होंगी कि अगर हम बीच में पड़े तो कल को वह हमें भी छेड़ सकता है। हां। इस बात की संभावना 60% है। कि कल को वह आप से टकरा जाऐ। पर अगर आप बीच में पड़कर महिला की मदद करती है तो 99% यह बात पक्की है  कि वह दोबारा यह करने की कोशिश नहीं करेगा। क्योंकि वह डर जाएगा।
   
      हम यह नहीं कहते कि आप एकदम लड़ने के लिए चल पड़े। हर लड़ाई लड़कर नहीं जीती जाती। कुछ जगहों पर दिमाग भी लगाना पड़ता है। जैसे:-
1. कभी ऐसा हो तो आप उस लड़की व महिला से टाईम पूछने या रास्ता पूछने के बहाने बात शुरू कर दो।

2. ऐसे दिखाओ कि वह तुम्हारी बहुत पुरानी सहेली है। उससे बात शुरू कर दो।

3. अगर आपको डर लगे तो एक दो और महिलाओं को साथ ले लो।

4. जब स्थिति लगे बिगड़ रही है तो ज़ोर-ज़ोर से शोर मचाने लगो। सच मानिए इन सब चीजों से डरकर वह खुद ही पीछे हट जाएगा। और किसी को भी छेड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाएगा।

      अगर एक बार ऐसे लोगों को यह पता चल जाए कि अब लोग ऐसे लोगों को छोड़ेंगे नहीं। सच मानिए इस तरीके के अपराधों में कमी आ जाएगी। पर इसके लिए जरूरी यह है कि आप उस समय उस लड़की व महिला का साथ दें। क्योंकि कल को हमें कोई परेशानी होगी तो कोई हमारा भी साथ नहीं देगा।



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