Friday 26 July 2019

भेदभाव क्यों?


             आज मैं अपने article की शुरूआत एक कहानी से कर रही हूं। एक बार एक रेलगाड़ी के एक डिब्बे में तीन-चार महिलाऐं सफर कर रही थी। रास्ते में उन्होनें आपस में बात करना भी शुरू कर दिया। मैं भी उसी डिब्बे में सफर कर रही थी। सब अपने-अपने घर की बातें कर रही थी। कि तभी एक महिला का फोन बजा और उसने उठाया, फोन उठाते ही वह महिला बहुत खुश हो गई। वह  उनके बेटे का फोन था जो कहीं बाहर शहर में नौकरी करता था। आप पूछेंगे कि मुझे कैसे पता चला। मुझे इसलिए पता चल गया क्योंकि वह मेरे बगल में ही बैठी थी। बातें शुरू हो गई। हाल-चाल पूछा गया, फिर महिला ने पूछा-

*महिला- और काम कैसा चल रहा है। सब ठीक है ना।

*बेटा- हां। मां काम ठीक चल रहा है। (आवाज़ ज़रा ठीली थी)
*महिला- क्या हुआ? आवाज़ बड़ी ठीली लग रही हैं। तुझ से एक दिन भी बात न करूं तो मुझे चैन नहीं मिलता।

*बेटा- कुछ नहीं मां आज office में ज़रा सी गलती क्या हो गई। बॉस ने बहुत डांटा। कहने लगा तुम्हें काम नहीं आता। क्या सीखा है तुमने मां-बाप ने कुछ सिखाया नहीं।

* महिला- ऐसे थोड़ा न होता है कि थोड़ी सी गलती पर इतना डांटा जाए। और बात मां-बाप तक आ जाए। अगर वह फिर डांटे तो वापस आ जाना। यहां नौकरी कर लेना। और मेरे पास ही रहना। मुझे तेरी बहुत चिंता होती है। नयी जगह, नये लोग उन्हें समझना चाहिए कि सभी एक जैसे नहीं होते।

    ‌‌‌‌‌‌‌उस महिला की यह बातें सुनकर मैं हैरान हो गई। आप भी कहेंगे कि इसमें हैरानी कैसी? मां का दिल तो ऐसा ही होता है। तो जनाब मैं हैरान इसलिए हुई क्योंकि फोन से पहले यही महिला सभी अन्य महिलाओं के साथ मिलकर ऐसे ही विषय पर बात कर रही थी। विषय था कि पता नहीं क्यों बहुओं की माताएं अपनी बेटियों को इतना फोन करती हैं। उन्हें ससुराल में adjust नहीं होने देती।
       यह सब सुनकर मुझे से रहा नहीं गया। मैंने झट ही पूछ लिया कि क्या हुआ, फोन के बाद वह उदास क्यों हो गई। तब उन्होंने सारी बातें बताई। सब बात सुनकर मैंने उनसे पूछा कि आप हर रोज़ आप अपने बेटे से बात करती है। उन्होंने कहा कि हां मां हूं ना।
        मैंने कहा-कमाल है अभी तो आप कह रही थी कि बहुओं की मां उन्हें क्यों इतना फोन करती है। उन्हें ससुराल में adjust नहीं होने देती। और फिर आप ही कह रही है कि आपका बेटा दूर कहीं काम करता है इसलिए आप उसे रोज़ फोन करती है।  मेरी यह बात सुनकर वह महिला गुस्से से लाल हो गई। और कहने लगी कि उस बात का, इस बात से क्या लेना-देना। यह आज-कल की लड़कियां कहीं भी झण्डा उठाकर शुरू हो जाती है।
       मैंने प्यार से उन्हें बिठाया और पानी पीने को दिया और आराम से बात शुरू की। मैंने उन्हें कहा-कि आप एक मां है और बेटे के दूर रहने से परेशान रहती है। तो ज़रा सोचिए कि जो आपके घर बहू आती है वह भी किसी की बेटी होती है। और उसकी मां भी, आपकी  तरह ही एक मां है। आपको तो पता है कि आपका बेटा एक न एक दिन transfer लेकर आपके पास आ जाएगा। परन्तु वह एक ऐसी मां होती है जो खुशी-खुशी अपने जिगर के टुकड़े को सारी उम्र के लिए दूसरे घर भेज देती हैं। नये माहौल में। और वहां adjust होने के लिए भी कहती हैं।
      ऐसे में अगर वह अपनी बेटी से हाल-चाल पूछने के लिए फोन करती है तो इसमें बुराई क्या है। और कोई भी मां अपनी बेटी का घर नहीं उजाड़ती।
     मेरी यह बात सुनकर वह महिला चुप हो गई। और शर्मिंदगी उसकी आंखों में साफ़ नज़र आ रही थी।

        मेरा उद्देश्य उन्हें शर्मिंदा करने का नहीं था। बस मुझे यह सुनकर व देखकर गुस्सा आया था कि वह सभी महिलाएं थीं जो कि किसी अन्य महिला की बुराई कर रही थी। क्योंकि दोनों स्थितियों में मां तो मां ही होती है चाहे वह बेटे की हो या बेटी की। तब हमारे समाज में ऐसा भेदभाव क्यों है कि मां बेझिझक बेटे को फोन कर सकती हैं पर अपनी बेटी के ससुराल में फोन नहीं कर सकती।
        इसका हल भी हम महिलाओं के पास ही है वो चाहे तो इस स्थिति को प्यार से सुलझा सकती हैं। क्योंकि अधिकतर ऐसे मामलों में एक महिला ही दूसरी महिला के विरुद्ध  होती है। इसलिए इसका हल भी हमीं महिलाओं को ही निकालना है।


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