सामाजिक पतन
पतन का अर्थ है “गिरना” और सामाजिक पतन का अर्थ हुआ “समाज का गिरना”, जो कि आजकल रोज की घटनाओं से साबित होता जा रहा है। लोगों में मर्यादा और शरम तो ऐसे खतम हो रही है जैसे मानो कि इससे उनका जनम-जनम से कुछ लेना देना न हो। हमारा पुरुष प्रधान समाज गालियाँ भी सारी की सारी माँ, बहनों और अब तो बेटियों को समर्पित करता है। और गालियाँ भी ऐसी जिसे सुनकर आदमी शरम से पानी पानी हो जाए। अगर दो आदमी या लड़के आपस में बात भी कर रहे हो तो भी इन सब गालियों के बिना उनकी बात पूरी नहीं होती।
समझ नहीं आता जिस देश में देवी, जो की एक नारी है उनकी पूजा होती है, नौ दिन तक व्रत रखे जाते है कन्या पूजन किया जाता है वहाँ उस देश में न तो नारी की इज्जत सुरक्षित है, न वह। पहले तो हमारे समाज में बड़ी-बड़ी लड़कियों और औरतों को घर में व घर से बाहर असुरक्षित समझा जाता था परंतु अब तो छोटी-छोटी बच्चियाँ भी सुरक्षित नहीं रही। जिसका उदाहरण सासाराम, कठुआ, सूरत की घटनाएँ है। जहाँ 6-8 साल तक की बच्चियों के साथ गलत काम किया गया और उन्हें मार दिया गया। और अभी हाल ही में दिल्ली रोहिणी क्षेत्र में एक 12 साल की बच्ची जो की मानसिक तौर पर सही नहीं है उसके साथ गलत किया गया और उसका विडियो उसके माँ-बाप को वाहटस एप किया गया। हद तो तब पार हो जाती है जब समाचार आता है कि एक नन्ही सी 6 महीने की बच्ची के साथ गलत किया गया और उसे मार दिया गया। शरम आती है यह सब सुनते हुए और मन करता है कि उस हैवान को गोली क्यों नहीं मार दी गई। आज जहाँ इन अपराधों में 18 साल से छोटे लड़के शामिल होते है, वहीं 60 साल के बूढ़े भी ऐसी घटनाओं को अंजाम दे रहे है। दिन ब दिन ऐसी घटनाऐं बढ़ती जा रही है। अभी हाल ही में पता चला कि एक तायकवांडू का कोच गलत हरकत करते हुए पकड़ा गया है, एक 50 साल का आदमी राजौरी गाडृन से गलत हरकत करते हुए पकड़ा गया है। इस तरह की घटनाओं का आदि तो काफी समय पहले से हो चुका है पर शरम और दुख की बात यह है कि उसका अंत अभी तक नहीं हो पाया है। इतनी गिरावट आखिर कहाँ से आदमी के अंदर आ गई है कि वह रिश्ते, उमर सब कुछ भूल कर हवस का गुलाम हो गया है।
आखिर क्या कारण है इन सब का, क्या कभी सोच कर देखा है आपने। सब अपने-अपने कारण बताते है:-
पहला कारण : कि लड़कियाँ कपड़े ऐसे पहनती है कि लड़के मजबूर होकर गलत काम कर बैठते है।
• जरा इन बेवकूफों से पूछो कि जो लड़कियाँ सूट या पूरे ढके कपड़े पहनकर निकलती है क्या उन्हें यह छोड़ देते है।
• जरा इनसे पूछो कि एक छोटी सी बच्ची के कपड़े कैसे इन्हें गलत काम करने को मजबूर कर देते है।
• और अगर मजबूरी इनसे गलत काम करवा देती है तो कितने गरीब व असहाय लोग सड़को पर नजर आते है ये लोग क्यों नहीं मजबूरी में इनकी मदद करते।
यह घटनाऐं दिन ब दिन बढ़ती जा रही है और अगर यह न रुकी तो यह समाज लड़कियों खासकर छोटी बच्चियों के लिए अभिशाप बन जाएगा। अभी सबसे अधिक जरूरत है तो इस अपराध को रोकने की है। यहाँ मैं अपनी समझ से कुछ उपाय बता रही हूँ जिससे इसका समाधान संभव हो सकता है:-
• सबसे पहले मैं आपसे एक अनुभव बाँटना चाहती हूँ। बाहूबली-2 फिल्म आई थी हमने भी यह फिल्म अपने परिवार के साथ सिनेमा हाल में देखी। इसमें जब यह सीन आता है जब प्रभास कहता है- “कि औरत पर गलत नजर डालने वाले कि ऊंगली नहीं, कटनी चाहिए गरदन” सच मानिए हाल खचाखच भरा हुआ था और इसके समर्थन पर सारे हाल ने इतनी तालियाँ बजाई, कि हाल गूँज उठा।
जरा सोचिए जब तीन घंटे की फिल्म का असर लोगों पर इतना पड़ता है तो जब फिल्मों में नग्नता, अश्लील दृशयों- डायलोग, अजीब पोशाको, को देखकर लोग जब बाहर निकलते है तो उनका लड़कियों को देखने का क्या नजरिया होता होगा।
हमें ऐसी फिल्में बनने पर रोक लगानी चाहिये। क्योंकि अपराध की जड़ पर चोट करनी चाहिये।
• इंटरनेट= कुछ समय पहले कुछ नाबालिग लोगों ने कुछ इसी तरह का अपराध किया था। तब एक माननीय मंत्री ने इस बात पर रोशनी डाली थी कि यह जो इंटरनेट पर पोनृ साइटस होती है यह भी इस तरह की घटनाओं का मुख्य कारण होता है जो कि काफी हद तक सही है। शरम और हद तो तब हो जाती है जब आप बच्चों के लिये ऐप पर गेमस ढूढँते हो तो ऐसी गेमस और साइटस आपके सामने आ जाती है। जब हमारी नजर उस पर पड़ सकती है तो क्या बच्चों की नजर नहीं पड़ती होगी। और क्या वह साइटस नहीं देखते होंगे। सोचिए उन पर कितना गलत असर पड़ता होगा।
सबसे पहले बंद होनी चाहिए। आप यकीन नहीं करेंगे कि नेट पर जब आसिफा कांड हुआ तब इन साइटस के लिसट मे “आसिफा” भी थी (यह बात बहुत शरम के साथ एक पापुलर सिंगर ने सोशल नेटवृक साइट पर शेयर की थी) कितनी शरम की बात है, डूब मरने की बात है की, कि किसी कि दर्दनाक तकलीफ में भी कुछ लोग मजा ढूँढते है। इन सब का सीधा असर लोगों की मानसिकता पर पड़ता है वह गलत सोचते है, और गलत करते हैं।
इसलिए ऐसी साइटस बेन होनी चाहिए।
और माँ-बाप को भी ध्यान देना चाहिए कि उनके बच्चे नेट पर क्या देखते है।
सबसे बड़ा सुधार हमारे कानून में होना चाहिए। कानून में इस गुनाह की कड़ी से कड़ी सजा होनी चाहिए। निभृया कांड हुआ तब कितनी मुशकिल व कितने लोगों की मेहनत के बाद उसे इंसाफ मिला। और कितना धीरे हुआ। पंरतु इससे सबक किसी को नहीं मिला।
कानून बदलने के लिये सरकार को और क्या चाहिये, क्योंकि ऐसे अपराधों की गिनती बड़ती जा रही है कम नहीं हो रही।
कानून में जरूर बदलाव आना चाहिए। इस गुनाह की सिर्फ एक ही सजा होनी चाहिए और वो है सजा ए मौत बस। और वह भी जल्दी से जल्दी। और इसमें आयु के नाम पर कोई रियायत न दी जाये
• क्योंकि जो इतना बड़ा गुनाह कर सकता है, वह पूरी सजा भी भुगत सकता है।
• क्योंकि यह कोई छोटा मोटा गुनाह नहीं है, बहुत बड़ा गुनाह है। क्योंकि जिसके साथ यह गुनाह होता है उसे बड़ी ही दर्दनाक मौत मिलती है या तो मौत से बदतर जिंदगी।
• इसलिए इनके साथ नरमाई बरतने का सवाल ही उठता।
मेरा यह मानना है कि इन सब बातों पर ध्यान दिया जाये ताकि इस अपराध में कमी आ सके।
पतन का अर्थ है “गिरना” और सामाजिक पतन का अर्थ हुआ “समाज का गिरना”, जो कि आजकल रोज की घटनाओं से साबित होता जा रहा है। लोगों में मर्यादा और शरम तो ऐसे खतम हो रही है जैसे मानो कि इससे उनका जनम-जनम से कुछ लेना देना न हो। हमारा पुरुष प्रधान समाज गालियाँ भी सारी की सारी माँ, बहनों और अब तो बेटियों को समर्पित करता है। और गालियाँ भी ऐसी जिसे सुनकर आदमी शरम से पानी पानी हो जाए। अगर दो आदमी या लड़के आपस में बात भी कर रहे हो तो भी इन सब गालियों के बिना उनकी बात पूरी नहीं होती।
समझ नहीं आता जिस देश में देवी, जो की एक नारी है उनकी पूजा होती है, नौ दिन तक व्रत रखे जाते है कन्या पूजन किया जाता है वहाँ उस देश में न तो नारी की इज्जत सुरक्षित है, न वह। पहले तो हमारे समाज में बड़ी-बड़ी लड़कियों और औरतों को घर में व घर से बाहर असुरक्षित समझा जाता था परंतु अब तो छोटी-छोटी बच्चियाँ भी सुरक्षित नहीं रही। जिसका उदाहरण सासाराम, कठुआ, सूरत की घटनाएँ है। जहाँ 6-8 साल तक की बच्चियों के साथ गलत काम किया गया और उन्हें मार दिया गया। और अभी हाल ही में दिल्ली रोहिणी क्षेत्र में एक 12 साल की बच्ची जो की मानसिक तौर पर सही नहीं है उसके साथ गलत किया गया और उसका विडियो उसके माँ-बाप को वाहटस एप किया गया। हद तो तब पार हो जाती है जब समाचार आता है कि एक नन्ही सी 6 महीने की बच्ची के साथ गलत किया गया और उसे मार दिया गया। शरम आती है यह सब सुनते हुए और मन करता है कि उस हैवान को गोली क्यों नहीं मार दी गई। आज जहाँ इन अपराधों में 18 साल से छोटे लड़के शामिल होते है, वहीं 60 साल के बूढ़े भी ऐसी घटनाओं को अंजाम दे रहे है। दिन ब दिन ऐसी घटनाऐं बढ़ती जा रही है। अभी हाल ही में पता चला कि एक तायकवांडू का कोच गलत हरकत करते हुए पकड़ा गया है, एक 50 साल का आदमी राजौरी गाडृन से गलत हरकत करते हुए पकड़ा गया है। इस तरह की घटनाओं का आदि तो काफी समय पहले से हो चुका है पर शरम और दुख की बात यह है कि उसका अंत अभी तक नहीं हो पाया है। इतनी गिरावट आखिर कहाँ से आदमी के अंदर आ गई है कि वह रिश्ते, उमर सब कुछ भूल कर हवस का गुलाम हो गया है।
आखिर क्या कारण है इन सब का, क्या कभी सोच कर देखा है आपने। सब अपने-अपने कारण बताते है:-
पहला कारण : कि लड़कियाँ कपड़े ऐसे पहनती है कि लड़के मजबूर होकर गलत काम कर बैठते है।
• जरा इन बेवकूफों से पूछो कि जो लड़कियाँ सूट या पूरे ढके कपड़े पहनकर निकलती है क्या उन्हें यह छोड़ देते है।
• जरा इनसे पूछो कि एक छोटी सी बच्ची के कपड़े कैसे इन्हें गलत काम करने को मजबूर कर देते है।
• और अगर मजबूरी इनसे गलत काम करवा देती है तो कितने गरीब व असहाय लोग सड़को पर नजर आते है ये लोग क्यों नहीं मजबूरी में इनकी मदद करते।
यह घटनाऐं दिन ब दिन बढ़ती जा रही है और अगर यह न रुकी तो यह समाज लड़कियों खासकर छोटी बच्चियों के लिए अभिशाप बन जाएगा। अभी सबसे अधिक जरूरत है तो इस अपराध को रोकने की है। यहाँ मैं अपनी समझ से कुछ उपाय बता रही हूँ जिससे इसका समाधान संभव हो सकता है:-
• सबसे पहले मैं आपसे एक अनुभव बाँटना चाहती हूँ। बाहूबली-2 फिल्म आई थी हमने भी यह फिल्म अपने परिवार के साथ सिनेमा हाल में देखी। इसमें जब यह सीन आता है जब प्रभास कहता है- “कि औरत पर गलत नजर डालने वाले कि ऊंगली नहीं, कटनी चाहिए गरदन” सच मानिए हाल खचाखच भरा हुआ था और इसके समर्थन पर सारे हाल ने इतनी तालियाँ बजाई, कि हाल गूँज उठा।
जरा सोचिए जब तीन घंटे की फिल्म का असर लोगों पर इतना पड़ता है तो जब फिल्मों में नग्नता, अश्लील दृशयों- डायलोग, अजीब पोशाको, को देखकर लोग जब बाहर निकलते है तो उनका लड़कियों को देखने का क्या नजरिया होता होगा।
हमें ऐसी फिल्में बनने पर रोक लगानी चाहिये। क्योंकि अपराध की जड़ पर चोट करनी चाहिये।
• इंटरनेट= कुछ समय पहले कुछ नाबालिग लोगों ने कुछ इसी तरह का अपराध किया था। तब एक माननीय मंत्री ने इस बात पर रोशनी डाली थी कि यह जो इंटरनेट पर पोनृ साइटस होती है यह भी इस तरह की घटनाओं का मुख्य कारण होता है जो कि काफी हद तक सही है। शरम और हद तो तब हो जाती है जब आप बच्चों के लिये ऐप पर गेमस ढूढँते हो तो ऐसी गेमस और साइटस आपके सामने आ जाती है। जब हमारी नजर उस पर पड़ सकती है तो क्या बच्चों की नजर नहीं पड़ती होगी। और क्या वह साइटस नहीं देखते होंगे। सोचिए उन पर कितना गलत असर पड़ता होगा।
सबसे पहले बंद होनी चाहिए। आप यकीन नहीं करेंगे कि नेट पर जब आसिफा कांड हुआ तब इन साइटस के लिसट मे “आसिफा” भी थी (यह बात बहुत शरम के साथ एक पापुलर सिंगर ने सोशल नेटवृक साइट पर शेयर की थी) कितनी शरम की बात है, डूब मरने की बात है की, कि किसी कि दर्दनाक तकलीफ में भी कुछ लोग मजा ढूँढते है। इन सब का सीधा असर लोगों की मानसिकता पर पड़ता है वह गलत सोचते है, और गलत करते हैं।
इसलिए ऐसी साइटस बेन होनी चाहिए।
और माँ-बाप को भी ध्यान देना चाहिए कि उनके बच्चे नेट पर क्या देखते है।
सबसे बड़ा सुधार हमारे कानून में होना चाहिए। कानून में इस गुनाह की कड़ी से कड़ी सजा होनी चाहिए। निभृया कांड हुआ तब कितनी मुशकिल व कितने लोगों की मेहनत के बाद उसे इंसाफ मिला। और कितना धीरे हुआ। पंरतु इससे सबक किसी को नहीं मिला।
कानून बदलने के लिये सरकार को और क्या चाहिये, क्योंकि ऐसे अपराधों की गिनती बड़ती जा रही है कम नहीं हो रही।
कानून में जरूर बदलाव आना चाहिए। इस गुनाह की सिर्फ एक ही सजा होनी चाहिए और वो है सजा ए मौत बस। और वह भी जल्दी से जल्दी। और इसमें आयु के नाम पर कोई रियायत न दी जाये
• क्योंकि जो इतना बड़ा गुनाह कर सकता है, वह पूरी सजा भी भुगत सकता है।
• क्योंकि यह कोई छोटा मोटा गुनाह नहीं है, बहुत बड़ा गुनाह है। क्योंकि जिसके साथ यह गुनाह होता है उसे बड़ी ही दर्दनाक मौत मिलती है या तो मौत से बदतर जिंदगी।
• इसलिए इनके साथ नरमाई बरतने का सवाल ही उठता।
मेरा यह मानना है कि इन सब बातों पर ध्यान दिया जाये ताकि इस अपराध में कमी आ सके।
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