शनिवार की रातें कंट्रोल रूम में सबसे शांत होती हैं। कम स्टाफ, कम कॉल्स और ज़्यादातर कैमरे ऑटो मोड पर रहते हैं। इसी शांति में अक्सर वे चीज़ें दिखाई देती हैं, जिन्हें बाकी दिन छुपा लिया जाता है।
अमित को यह बात अच्छी तरह पता थी।
वह पिछले छह साल से शहर के ट्रैफिक और सीसीटीवी कंट्रोल रूम में काम कर रहा था। नियम साफ़ थे—
कोई भी फुटेज बिना लिखित आदेश के डिलीट नहीं होगी।
लेकिन 14 जुलाई 2019, शनिवार की रात, यह नियम तोड़ा गया था।
उस दिन एक लोकल बस डिवाइडर तोड़कर नीचे उतर गई थी।
सरकारी रिपोर्ट में लिखा गया—
“ब्रेक फेल, ड्राइवर की गलती।”
असल में ब्रेक ठीक थे।
गलती सिस्टम की थी।
और उसका सबूत—कैमरा नंबर 16 में रिकॉर्ड था।
अमित ने वही फुटेज डिलीट की थी।
तीन साल बाद, एक और शनिवार।
रात 11:47 पर
अमित ने देखा—
मॉनिटर अपने आप रीफ़्रेश हुआ।
कैमरा 16।
उसकी रीढ़ में ठंडक दौड़ गई।
यह कैमरा तो उस हादसे के बाद स्थायी रूप से बंद कर दिया गया था।
स्क्रीन पर वही पुराना बस स्टॉप था।
वही एंगल।
वही टाइमस्टैम्प।
और वहाँ खड़ी थी एक औरत,
उसके साथ एक छोटी बच्ची।
अमित ने सिस्टम चेक किया
कोई लाइव फीड नहीं,
कोई नेटवर्क इनपुट नहीं।
फिर भी तस्वीर चल रही थी।
उसने ज़ूम किया।
औरत के हाथ में एक काग़ज़ था।
कैमरा भले दूर था,
पर लिखावट साफ़ दिख रही थी
“फाइल क्लोज़ नहीं होती,
सिर्फ़ दबाई जाती है।”
अमित का गला सूख गया।
उसी पल कंट्रोल रूम की घड़ी ने फिर 11:47 दिखाया।
टाइम आगे बढ़ ही नहीं रहा था।
स्क्रीन पर बच्ची ने अचानक सिर उठाया।
सीधे कैमरे की ओर।
उसके होंठ हिले।
कोई आवाज़ नहीं आई,
पर अमित समझ गया
“आपने हमें देखा था।”
अमित की उंगलियाँ काँपने लगीं।
उसे याद आया
उस रात भी बस में एक बच्ची थी।
रिपोर्ट में उसका नाम नहीं था।
अचानक स्क्रीन ब्लैक हो गई।
सिस्टम फिर नॉर्मल हो गया।
समय चलने लगा 11:48।
अमित ने राहत की साँस ली।
लेकिन तभी उसकी ऑफ़िशियल मेल आईडी पर
एक ऑटो-जेनरेटेड मेल आया
Subject: Case Reopened
Reference: File 16
Next Review: Saturday, 11:47
अमित कुर्सी पर बैठ गया।
उसे समझ आ गया
कुछ मामलों में
सबूत मिटाने से
मामला खत्म नहीं होता।
वह बस
अगले शनिवार का इंतज़ार करता है।

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