Wednesday, 24 December 2025

डर से मंज़िल तक

 


       रात के साढ़े दस बजे पहाड़ी इलाके की आख़िरी बस चली। बारिश थम चुकी थी, लेकिन कोहरे की चादर सड़क पर फैलने लगी थी। बस जैसे ही ऊँचाई की ओर बढ़ी, मोबाइल नेटवर्क चला गया और घुमावदार रास्तों ने समय का अंदाज़ा बिगाड़ दिया। यात्रियों को लगा कि सफ़र लंबा खिंच रहा है। कोई खिड़की से बाहर झांक रहा था, कोई घड़ी देख रहा था। ड्राइवर शांत था, कंडक्टर भी, मानो उन्हें पहले से पता हो कि आगे क्या होने वाला है।

      कुछ देर बाद बस एक ऐसे मोड़ पर पहुँची जहाँ कोहरा अचानक बहुत घना हो गया। हेडलाइट की रोशनी लौटकर शीशे पर पड़ने लगी और बाहर का रास्ता बार-बार एक-सा दिखने लगा। दरअसल उस हिस्से में सड़क गोलाई में घूमती है और पास-पास कई मिलते-जुलते मोड़ हैं, ऊपर से कोहरा और नमी मिलकर ऐसा भ्रम पैदा कर देती है कि यात्रियों को लगता है वही जगह फिर आ गई। किसी ने घबराकर कहा, “हम घूम रहे हैं क्या?” यही से बेचैनी बढ़ी। डर ने दिमाग़ में तस्वीरें बना दीं।

      कंडक्टर ने जानबूझकर बस को एक पुराने बस स्टॉप पर रोका। वह जगह स्थानीय ड्राइवरों के लिए जानी-पहचानी थी—वहाँ हवा खुलती है, कोहरा हल्का हो जाता है और दिमाग़ को राहत मिलती है। उसने सबको पानी दिया और मुस्कराकर बोला, “थोड़ा रुकते हैं, रास्ता साफ़ होने दीजिए।” ड्राइवर ने इंजन बंद नहीं किया, ताकि यात्रियों को यह एहसास रहे कि बस सुरक्षित है।

      जैसे ही कोहरा कम हुआ, दूर पहाड़ी बस्ती की रोशनियाँ दिखने लगीं। उसी पल मोबाइल में नेटवर्क भी आ गया। लोगों ने राहत की साँस ली। किसी ने हँसते हुए कहा, “लगता है डर ने ही हमें फंसा दिया था।” ड्राइवर ने आईने से पीछे देखते हुए कहा, “पहाड़ों में अक्सर ऐसा होता है—रास्ता नहीं, डर घुमाता है।”

      बस फिर चली। अब वही मोड़ सीधे लग रहे थे, वही पेड़ पहचान में आ रहे थे। थोड़ी देर में चाय की दुकानें, घरों की बत्तियाँ और मुख्य
सड़क साफ़ दिखने लगी। यात्रियों के चेहरे हल्के हो गए। कोई मज़ाक करने लगा, कोई खिड़की खोलकर ठंडी हवा लेने लगा।

      अंतिम स्टॉप पर सब सुरक्षित उतरे। कंडक्टर ने कहा, “आज की यात्रा ने एक बात सिखा दी—जब दिमाग़ शांत हो, तो रास्ता खुद साफ़ दिखता है।” बस आगे बढ़ गई, बिल्कुल सामान्य, बिना किसी रहस्य के।

      सुबह जब लोग उसी रास्ते से गुज़रे, तो वह बिल्कुल आम पहाड़ी सड़क थी। न कोई अजीब स्टॉप, न कोई डर। बस एक याद रह गई—कि उस रात जो कुछ भी हुआ, वह रास्ते की नहीं, डर और भ्रम की कहानी थी… और जैसे ही डर हटा, सफ़र आसान हो गया।

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