Sunday 21 June 2020

थपप्ड़। गलत या सही।

नमस्कार दोस्तो,
        
          थोड़े समय पहले एक film आई थी 'थप्पड़' । फिल्म में कहानी यह थी कि एक पति अपनी पत्नी को गुस्से में आकर थप्पड़ मार देता है। जिसका उसकी पत्नी बहुत विरोध करती है।
         कुल मिलाकर अधिकतर लोगों का इस फिल्म में यही कहना होता है कि एक ही थप्पड़ मारा है कौन सी बड़ी बात है। जो इतना बवाल मचा रखा है। पंरतु पत्नी इसका पूरा विरोध करती है। जबकि पति माफी भी मांगता है
         
       अधिकतर लोगों का कहना था कि एक थप्पड़ की ही तो बात थी। इसमें इतना बवाल मचाने की क्या जरूरत थी। पर इस फिल्म में पत्नी का कहना था कि कि एक थप्पड़ भी क्यों मारा जाए।
    यह तो एक फिल्म थी परन्तु आमतौर पर भी लोगों का यही मानना होता है कि यह तो एक आम बात है। कुछ समय पहले मैंने social media पर ऐसा ही एक लघु नाटक देखा जिसमें दिखाया गया था कि पति-पत्नी में लड़ाई होती है और पति पत्नी को थप्पड़ मारने वाला होता है पर रूक जाता है। और अपने काम पर चला जाता है। लेकिन पत्नी अपनी मां को फोन करती है कि मुझे घर ले चलो। जिस पर मां भी भावुक हो जाती है। परंतु पिता उसे समझाता है कि एकदम यह कदम न उठाओ। थोड़ा इंतजार करो। और होता भी यही है कि शाम को पति वापस आता है और दोनों में सुलह हो जाती है। अंत में पति यह शिक्षा भी देता है कि छोटे-छोटे झगड़ों में लड़की का घर छोड़ कर चला जाना ठीक नहीं है। क्या शादी से पहले भी,  जब घर पर झगड़े होते हैं तो क्या वह घर छोड़कर चली जाती थी। 
     यह बात मुझे भी सही लगी। क्योंकि घर छोड़ देना गलत है। और ध्यान देने वाली इसमें यह बात है कि इसमें पति ने पत्नी को थप्पड़ नहीं मारा था या दूसरे शब्दों में कहा जाए कि हाथ नहीं उठाया था। जो की बहुत अच्छी बात थी।

         अब हम आते है अपने मुख्य विषय पर। कि थप्पड़ मारना सही था। इस थप्पड़ फिल्म में काफी हद तक सच्चाई दिखाई गई है। जिस बेटी को थप्पड़ मारा जाता है, उसके अपने माता-पिता भी उसे कहते है कि छोटे से मामले को तूल मत दो। क्या हुआ एक थप्पड़ ही तो मारा है।
     और तो और समाज में एक और बड़ी अवधारणा है कि औरतें पहले तो लड़ती है, दिमाग खराब करती हैं। यही कारण है कि उन्हें थप्पड़ मारा जाता है।
     यहां मेरा यह मानना है, मेरा क्या सबका यही मानना होना चाहिए कि हाथ उठाना किसी भी तरह से सही नहीं है। क्योंकि लड़ाई तो आदमी भी करते हैं, दिमाग तो वो भी खराब करते हैं तो क्या उन्हें भी थप्पड़ जड़ देना चाहिए। और अगर किसी पुरुष को थप्पड़ पड़ जाए तो यह उनके मान-सम्मान का प्रश्न बन जाता है। सारा समाज उस लड़की के पीछे पड़ जाता है। ससुराल के वह सारे सदस्य इस में कूद जाते हैं, जो कि औरत को थप्पड़ पड़ने पर उनका आपसी मामला बताते हैं। तब यह दलील कहां जाती है कि क्या शादी से पहले उन्हें थप्पड़ नहीं पड़ा होगा। और औरत जिसे हमारे समाज में पूजनीय माना जाता है, उसको मारने पर सब चुप रहते हैं, या उसे ही दोषी मानते हैं।
     इस बार Lockdown में, बड़ी हैरानी की बात सामने आई है कि बाहर के देशों से भी घरेलू हिंसा की बहुत खबरें आई हैं जो कि बहुत ग़लत है। समाज को औरत को कमजोर नहीं मानना चाहिए। इस स्थिति से हम औरतें ही अपने आप को बाहर ला सकती है। जब भी ऐसा कुछ हो, सबसे पहले ससुराल में जितनी भी महिला है चाहे वो सास हो, नन्द हो, देवरानी जेठानी हो सबको मिलकर इस का विरोध करना चाहिए। और तो और उस लड़की को भी हिम्मत दिखानी चाहिए और अपने पर हाथ नहीं उठाने देना चाहिए। 
        और सबसे बड़ी बात मैं उन माता-पिता को कहना चाहती हूं, जो बेटी आप लोगों के साथ इतना समय रही और आपने कभी उस पर हाथ नहीं उठाया, तो अचानक वहां ऐसा क्या हो गया कि किसी ने उस पर हाथ उठाया। ऐसी स्थिति में अपनी बच्ची का साथ दीजिए।
     और सबसे एक विर्नम अपील है कि सबका स्वाभीमान होता है, और जिन चीजों से आपके स्वाभीमान को ठेस लग सकती है, तो दूसरे का भी स्वाभीमान आहत हो सकता है।
       और सभी झगड़े बिना मार-पीट के सुलझाएं जा सकते हैं। 
        

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