Tuesday, 26 August 2025

The demon of dowry is still alive



 Hello friends,

     Today I am writing this article on the incidents happening nowadays. The topic is social and in this article, I am presenting my views and hope that you will also share your views.

      Recently a news is coming that a girl was burnt alive in the matter of dowry. And this incident was also shown on T.V. Today everyone is blaming the in-laws of that girl for this incident. Yes, they are the biggest culprits, they should get the harshest punishment for this.

     The girl with whom this incident happened was suffering this pain for a long time. Therefore, she is not the only culprit, her own family members are also guilty.

      I believe that if your daughter is being harassed for dowry, then why does the girl's family not support her in time? Why do they keep pushing their daughter into the same hell due to fear of society or fear of what the relatives will say? Now you tell me which society or relative came and saved that girl.

    It is very important to understand some things here. That once the in-laws demand dowry, they will never stop demanding dowry, no matter how many times you try to make peace and keep your daughter there.

     Here the girl's family should understand that if they are making unnecessary demands, they should save their daughter. If they don't understand after explaining, then there is no use in forcibly maintaining these hollow relationships, rather there is a terrible end.

      I don't understand why the parents completely disown the girl once she is sent away. Whereas at this time they should support their daughter the most. They should get her out of that hollow relationship and make their daughter self-reliant with the money that the parents were going to give them.

      And the boy's family should also believe that you are bringing a daughter-in-law home, not a bank that you can start demanding money when you need it. Make your son so capable that he can run his family. And the most important thing is that the girl's family gives you a piece of their heart, what more can they give you?

      And always keep this in mind that your daughter leaves after marriage and does not become a stranger, she always remains your daughter, so keep her safe.


Thank you

दहेज का दानव अभी जिंदा है

 


नमस्कार दोस्तों, 

         आज मैं यह लेख आजकल हो रही घटनाओं पर लिख रही हूँ| विषय सामाजिक हैं और इस लेख में, मैं अपने विचार पेश कर रही हूँ और आशा करती हूं कि आप भी अपने विचार साझा करेंगे|

         अभी हाल ही में एक news आ रही है कि एक लड़की को दहेज के चक्कर में जिंदा जला दिया गया| और इस घटना को T.V. पर दिखाया भी गया| आज सब इस घटना के लिए उस लड़की के ससुराल वालों को दोषी बता रहे हैँ| हां, वह सबसे बड़े दोषी हैं उन्हें तो इसकी कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए|

        जिस लड़की के साथ यह घटना घटी वो काफी समय से यह दुख सह रही थी| इसलिए उसके दोषी केवल वही नहीं है उसके खुद के घरवाले भी हैं|

       मेरा मानना यह है कि अगर आपकी बेटी को दहेज को लेकर परेशान किया जा रहा है तो क्यों नहीं लड़की के घरवाले समय रहते उसका साथ नहीं देते| क्यों समाज के डर से या रिश्तेदार क्या कहेंगे इस डर से अपनी बच्ची को उसी नरक में धकेले रखते हैं| अब आप ही बताये कौन से समाज ने या रिश्तेदार ने आकर उस लड़की को बचा लिया|

      यहां कुछ बातें समझना बहुत जरूरी है| कि अगर एक बार ससुराल वाले दहेज की मांग करते हैँ तो वह कभी भी नहीं  रुकेंगे दहेज मांगने से चाहें आप कितनी भी सुलह करवा कर अपनी बेटी को वहां टिकायें रहे|

     यहां लड़की वालों को समझना चाहिए कि अगर वो अनावश्यक मांग कर रहे हैं तो उन्हें अपनी बेटी को बचाना चाहिए|अगर वह समझाने से नहीं समझते तो जबरदस्ती इन खोखले रिश्तों को बनाए रखने का कोई फायदा नहीं होता बल्कि भयंकर अंत जरूर होता है|

     मुझे यह समझ नहीं आता कि एक बार लड़की को विदा करने के बाद उसे मां-बाप बिल्कुल पराया क्यों कर देते हैं| जबकि इस समय सबसे ज्यादा उन्हें अपनी  बेटी का साथ देना चाहिए| उसे उस खोखले रिश्ते से बाहर निकालना चाहिए और जो पैसा मां-बाप उन्हें देने वाले थे उस से अपनी बेटी को आत्मनिर्भर बनायें|

    और लड़के वालों को भी यह मानना चाहिए कि आप बहू घर ला रहे हैं कोई बैंक नहीं कि जब जरूरत होगी तब पैसों की मांग करने लग जाओ|अपने बेटे को इतना सक्षम बनाओ कि वह अपना परिवार चला सके| और सबसे बड़ी बात लड़की वाले अपने जिगर का टुकड़ा आपको दे देते है इससे ज्यादा और क्या दें|

    और हमेशा इस बात को ध्यान में रखे कि बेटी शादी के बाद विदा होती है पराई नहीं होती, हमेशा आपकी ही बेटी रहती है इसलिए उसे सुरक्षित रखिये|


धन्यवाद 

      

      


        

Sunday, 15 June 2025

"जब हम बच्चे थे, हमें नहीं समझ आता था… अब जब हम माता-पिता हैं, सब समझ आता है (व्यवहार एक आईना)"



🙏 नमस्कार दोस्तों,

    आज मैं बात करूंगी एक ऐसे विषय पर, जिससे मेरे जैसे हमउम्र लोग शायद पूरी तरह सहमत होंगे, और जो हमसे छोटे हैं, वो अभी नहीं... लेकिन आगे चलकर ज़रूर सहमत होंगे।
और ये विषय है – "व्यवहार"।

अब आप सोच सकते हैं कि इसमें क्या खास बात है?
पर यकीन मानिए, यह एक बहुत गहराई वाला और मजेदार विषय है, और आज मैं इसे अपने अनुभवों के आधार पर आपसे साझा कर रही हूं।

अगर आप मेरी बातों से असहमत हों, तो आपका नजरिया भी पूरा सम्माननीय है – लेकिन कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताइएगा।

👨‍👩‍👧 जब बचपन में हम नहीं समझते थे...
    आपने कई बार स्कूलों, बाजारों या अन्य जगहों पर देखा होगा – जब माता-पिता अपना व्यवहार के अनुसार कुछ कह रहे होते हैं, तो उनके बच्चे उन्हें चुप करवाते हैं या शर्मिंदगी महसूस करते हैं।

मुझे याद है जब मैं 13–14 साल की थी, तो अक्सर लगता था –
"हर वक्त कोई न कोई काम! कभी तो आराम करने दो।"

उस समय हमें ये नहीं पता होता था कि:

हमारी अनदेखी और पलट कर जवाब देना, हमारे माता-पिता को कितना चुभता है।

👀 अब जब हम उनकी जगह हैं…
   अब जब खुद बच्चों की परवरिश कर रहे हैं, तब समझ आता है कि:

किसी बात को अनसुना करना,

बात का उल्टा जवाब देना,

या हर बात पर बहस करना…
दिल पर नश्तर जैसा लगता है।

एक और मजेदार बात –
बचपन में जब हम बाजार जाते थे और माता-पिता दुकानदार से मोलभाव करते थे, तो हम शर्म से चुप करवाने की कोशिश करते थे।
आज जब खुद सामान खरीदते हैं और कोई दोगुनी कीमत मांगे… तो गुस्से में आवाज़ तेज हो ही जाती है।

क्योंकि अब समझ आता है –
"पैसे की अहमियत क्या होती है!"


💡 अब सीख यही है:
   अपने माता-पिता की बात को कभी अनसुना न करें।
कभी पलट कर जवाब न दें।
कभी उनकी आवाज़ या बर्ताव पर शर्मिंदा न हों।

क्योंकि एक दिन जब आप उन्हीं की जगह होंगे…
तो यही सब लौटकर आपके पास आएगा।


🙏 अंत में…
  मैं सिर्फ इतना कहूंगी कि:
मां-बाप की इज्जत करना एक संस्कार है,
जो हम जितना जल्दी सीख लें, उतना बेहतर।

अगर आपको ये लेख पसंद आया हो तो कमेंट ज़रूर कीजिए।
और अगर नहीं भी पसंद आया हो, तब भी अपनी राय साझा करें –
क्योंकि हर विचार का स्वागत है।

आपका हार्दिक धन्यवाद!
💐











Tuesday, 27 May 2025

आज के युवाओं के रिश्ते – क्या ये सच्चा प्यार है या सिर्फ वैलिडेशन की तलाश? | Modern Dating vs Indian Values

 आज के युवाओं के रिश्ते – प्यार या वैलिडेशन?

आज का युवा वर्ग प्यार और रिश्तों को नए नज़रिए से देख रहा है। एक तरफ़ है सोशल मीडिया का प्रभाव, और दूसरी तरफ़ है पारंपरिक संस्कारों की छाया। सवाल यह है – क्या ये रिश्ते सच्चे प्रेम पर आधारित हैं या सिर्फ एक-दूसरे से वैलिडेशन पाने की लालसा?


सोशल मीडिया और वैलिडेशन का असर

आज के दौर में Instagram, Snapchat और Tinder जैसे प्लेटफॉर्म्स ने रिश्तों की परिभाषा ही बदल दी है। 

* लोग अब रिश्तों को एक "स्टेटस सिंबल" की तरह देखने लगे हैं।

* कपल फोटोज, स्टोरीज, और रील्स के ज़रिए अपने रिश्तों का दिखावा करना आम हो गया है।

* कई बार यह प्यार नहीं बल्कि attention और validation पाने का तरीका बन जाता है।

वैलिडेशन बनाम असली प्यार – पहचान कैसे करें?

असली प्यार (True Love) वैलिडेशन की चाह (Validation)

👉असली प्यार (True Love) - आपसी समझ और भावनात्मक जुड़ाव

👉वैलिडेशन की चाह (Validation) - दूसरों को दिखाने की ज़रूरत

👉असली प्यार- समय के साथ गहराता है

 👉वैलिडेशन की चाह (Validation)  - चंद लाइक्स से तसल्ली मिलती है

👉असली प्यार - भरोसा, समर्थन और समर्पण

👉 वैलिडेशन की चाह (Validation) - असुरक्षा, जलन और तुलना

      अगर रिश्ता आपको आंतरिक संतोष देता है, तो वो प्यार है। लेकिन अगर आप सिर्फ सोशल मीडिया पर दिखावे के लिए रिश्ते में हैं, तो यह सिर्फ वैलिडेशन है।

मॉडर्न डेटिंग कल्चर बनाम पारंपरिक भारतीय मूल्य – एक तुलनात्मक दृष्टिकोण

पारंपरिक भारतीय मूल्य (Traditional Indian Values)

* भारत में रिश्ते केवल दो लोगों के बीच नहीं होते, बल्कि यह दो परिवारों की साझेदारी होते हैं।

* परिवार की पसंद और राय को अहमियत दी जाती है।

* धैर्य, त्याग, और समझदारी को रिश्ते की नींव माना जाता है।

* शादी को एक पवित्र बंधन समझा जाता है, जिसमें स्थायित्व सर्वोपरि है।

मॉडर्न डेटिंग कल्चर (Modern Dating Culture)

* आज के समय में युवा रिश्तों को लेकर अधिक स्वतंत्र हैं।

* अपने पार्टनर को खुद चुनने की आज़ादी है।

* डेटिंग ऐप्स ने विकल्पों की भरमार कर दी है।

     बहुत से रिश्ते केवल कुछ हफ्तों या महीनों तक ही चलते हैं – जिसे आज की भाषा में "situationship" भी कहते हैं।


मुख्य अंतर – एक नजर में

पारंपरिक मूल्य बनाम मॉडर्न डेटिंग

रिश्ता कैसे शुरू होता है

परिवार की भूमिका से। 

स्वयं की पसंद से

रिश्ता कितना गहरा होता है

दीर्घकालिक सोच

तात्कालिक अनुभव

समाज का प्रभाव

समाज-परिवार का दबाव

स्वतंत्रता और निजता

प्रेम की परिभाषा

त्याग और समर्पण

आत्म-संतुष्टि और आकर्षण

क्या दोनों के बीच संतुलन संभव है?

👉बिलकुल। आज का युवा अगर चाहे तो दोनों सोचों का बेहतर तालमेल बिठा सकता है:

👉पार्टनर चुनने में स्वतंत्रता रखते हुए भी पारिवारिक मूल्यों का सम्मान किया जा सकता है।

👉सोशल मीडिया पर रिश्ते दिखाने से ज़्यादा जरूरी है इमोशनल कनेक्शन को समझना।

👉सच्चे रिश्ते में भरोसा, संवाद और साथ की भावना होनी चाहिए – ना कि केवल ट्रेंड्स की नकल।


     अंत में यही कहना चाहूंगी कि  प्यार, दिखावा नहीं है। आज के युवा भावनात्मक रूप से जागरूक हैं लेकिन अक्सर ट्रेंड्स की दुनिया में खो जाते हैं। प्यार अगर सच्चा हो, तो उसे सोशल मीडिया की मोहर नहीं चाहिए। वहीं, पारंपरिक मूल्यों में जो स्थायित्व और गहराई है, वो आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।



Friday, 23 May 2025

पीढ़ियों का अंतर (Generation Gap)और मानसिकता: समझ, समाधान और सामंजस्य की ओर

 



नमस्कार दोस्तों,

       आज मैं अपने लेख के द्वारा एक बहुत ही महत्वपूर्ण समस्या और उसके समाधान के बारे में बात करने जा रही हूं और वह है "पीढ़ियों का अंतर और मानसिकता: समझ, समाधान और सामंजस्य की ओर" यानी की Generation Gap". 

     समय के साथ हर पीढ़ी की सोच, दृष्टिकोण और जीवनशैली में फर्क आना स्वाभाविक है। इस फर्क को ही "Generational Gap" कहा जाता है। यह सिर्फ उम्र का अंतर नहीं, बल्कि अनुभव, सोच और मानसिकता का टकराव भी है। इस लेख में हम समझेंगे कि यह अंतर क्यों होता है, इसके प्रभाव क्या हैं, और कैसे हम इसे पाटकर एक सकारात्मक समाज की ओर बढ़ सकते हैं।

1. पीढ़ियों का अंतर क्या है?

हर 15-20 वर्षों में एक नई पीढ़ी सामने आती है, जो अपने अनुभवों, तकनीकी समझ और जीवनशैली के अनुसार सोचती है।

🔶️ उदाहरण:

🔸️पुरानी पीढ़ी अनुशासन और परंपरा में विश्वास रखती है।

🔸️नई पीढ़ी स्वतंत्रता और नये विचारों की पक्षधर है।


2. मानसिकता में यह अंतर क्यों आता है?

🔸️तकनीकी विकास: स्मार्टफोन, इंटरनेट और सोशल मीडिया ने सोचने का तरीका बदल दिया है।

🔸️परिवारिक बदलाव: संयुक्त परिवार से एकल परिवारों की ओर रुझान।

🔸️शिक्षा और एक्सपोज़र: आज की पीढ़ी ज्यादा जागरूक और स्वतंत्र है।


3. Generational Gap के प्रभाव

🔶️ सकारात्मक:

🔸️अनुभव और नई सोच का मेल।

🔸️सामाजिक संतुलन की संभावनाएं।


🔶️ नकारात्मक:

🔸️संवाद की कमी और संघर्ष।

🔸️आपसी अपेक्षाओं में विरोध।


     अब हम यह समझने की कोशिश  करते है कि इस अंतर को कैसे खत्म किया जा सकता है:-

1. सुनना और समझना सीखें :-

जब हम एक-दूसरे की बातों को खुलकर और ध्यान से सुनते हैं, तो सोचने की प्रक्रिया में समानता आने लगती है। इससे गलतफहमियां कम होती हैं और रिश्ता मज़बूत बनता है।


2. सम्मान और सहिष्णुता बढ़ाएं :-

हर पीढ़ी की सोच, मूल्य और अनुभव का आदर करना ज़रूरी है। इससे दोनों ओर विश्वास कायम होता है और संघर्ष की जगह सहयोग बढ़ता है।


3. तकनीक और परंपरा का संतुलन बनाए रखें :-

नई पीढ़ी तकनीक से जुड़ी है तो पुरानी पीढ़ी मूल्यों और परंपराओं से। जब दोनों मिलकर काम करते हैं, तो एक बेहतर और संतुलित वातावरण बनता है।


4. संवाद को प्राथमिकता दें :-

खुलकर और नियमित संवाद से दोनों पक्ष अपनी भावनाएं और विचार साझा कर सकते हैं। इससे विचारों में टकराव की जगह समझदारी आती है।


      और अंत में, मैं यही कहना चाहूंगी कि Generational Gap कोई समस्या नहीं, बल्कि एक अवसर है—एक-दूसरे से सीखने और समाज को बेहतर बनाने का। यदि हम सहिष्णुता, संवाद और समझ का रास्ता अपनाएं, तो यह दूरी नज़दीकी में बदल सकती है।



      

Wednesday, 21 May 2025

चिलचिलाती गर्मी से बचने के आसान और बजट में उपाय (शुगर पेशंट्स के लिए विशेष सुझाव)


नमस्कार दोस्तों

      आज हम बात करेंगे चिलचिलाती गरमी की। यहां मैं कुछ उपाय बताना चाहती हूं उनके लिए जो चिलचिलाती गरमी में बाहर जाते है बजट में शुगर पेशंट को भी ध्यान में रखकर मैं कुछ उपाय बताने जा रही हूं।

    चिलचिलाती गर्मी में बाहर निकलना सच में चुनौतीपूर्ण होता है, खासकर उन लोगों के लिए जो शुगर (डायबिटीज़) के मरीज हैं। 


चिलचिलाती गर्मी से बचने के आसान और बजट में उपाय (शुगर पेशंट्स के लिए विशेष सुझाव)

     गर्मी का मौसम जहाँ आम जनजीवन को प्रभावित करता है, वहीं डायबिटीज़ के मरीज़ों के लिए ये समय और भी संवेदनशील होता है। यदि आप बजट में रहते हुए बाहर काम पर जाते हैं या घूमने निकलते हैं, तो ये उपाय आपके लिए बेहद मददगार साबित हो सकते हैं।


1. पानी ही जीवन है – हाइड्रेटेड रहें

दिन में 8–10 गिलास सादा पानी पिएं।

बाहर जाते समय स्टील या BPA-फ्री बोतल में ठंडा पानी साथ रखें।

ग्लूकोज ड्रिंक या मीठी बोतलें अवॉइड करें, खासकर शुगर पेशंट्स के लिए।


2. नींबू पानी – लेकिन बिना चीनी के

एक नींबू का रस, चुटकी भर काला नमक और पुदीने की पत्तियाँ – बना एक बढ़िया डायबिटिक फ्रेंडली एनर्जी ड्रिंक।

इसमें न चीनी है, न कैलोरी – और बजट में भी।


3. सही कपड़े पहनें

हल्के, सूती और ढीले कपड़े पहनें।

सफेद या हल्के रंगों के कपड़े सूरज की रोशनी को कम अवशोषित करते हैं।

सिर पर गमछा, कैप या छाता ज़रूर रखें।


4. खाना हल्का और संतुलित रखें

बाहर जाते समय भारी, मसालेदार भोजन से बचें।

उबले चने, मूंग, सलाद, दही – ये सब ठंडक देने वाले, सस्ते और शुगर के अनुकूल होते हैं।


5. फल खाएँ – लेकिन सीमित मात्रा में

तरबूज, खीरा, पपीता और अमरूद जैसे फल चुनें जो शुगर कंट्रोल में रखते हैं और शरीर को ठंडक देते हैं।

केला, आम, लीची जैसे फल शुगर के मरीज कम खाएं या डॉक्टर से सलाह लें।


6. सस्ते होममेड ठंडक देने वाले उपाय

पुदीना पानी – उबाले हुए पानी में पुदीने की पत्तियाँ डालकर ठंडा करें।

सौंफ का शरबत – सौंफ भिगोकर छान लें, इसमें बर्फ डालकर पिएं (बिना शक्कर)।


7. धूप से बचने के लिए सही समय चुनें

कोशिश करें कि सुबह 10 बजे से पहले और शाम 5 बजे के बाद बाहर निकलें।

अगर ज़रूरी हो तो धूप में चलने की बजाय छायादार रास्ता चुनें।


8. ब्लड शुगर की निगरानी

गर्मी में शरीर डिहाइड्रेट होता है जिससे ब्लड शुगर फ्लक्चुएट कर सकता है।

अगर बाहर जा रहे हैं तो ग्लूकोमीटर और कुछ हल्का स्नैक साथ रखें।


       निष्कर्ष यही है कि गर्मी से बचाव मुश्किल नहीं है अगर आप थोड़ी समझदारी और प्लानिंग से काम लें। शुगर पेशंट्स को चाहिए कि पानी पीते रहें, हल्का खाएं और खुद को ज़्यादा थकने से बचाएं। आप भी इन आसान उपायों को अपनाकर गर्मी का मज़ा सुरक्षित और स्वस्थ तरीके से ले सकते हैं।

Thursday, 15 May 2025

मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक दबाव: एक अदृश्य जंग



नमस्कार दोस्तों

      आज मैं आपके सामने एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर एक ब्लॉग लिख रही हूं और वह विषय है "मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक दबाव: एक अदृश्य जंग"

     आज की तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी में हम सब एक अनदेखी दौड़ का हिस्सा बन चुके हैं। यह दौड़ है सामाजिक अपेक्षाओं, सफलता के मापदंडों और दिखावे की दुनिया की है। इस सबके बीच, जो चीज़ सबसे ज्यादा नज़र अंदाज होती है – वह है मानसिक स्वास्थ्य।


     मानसिक स्वास्थ्य का तात्पर्य केवल “पागलपन” से नहीं है, जैसा कि अक्सर हमारे समाज में गलतफहमी होती है। यह हमारे सोचने, समझने, महसूस करने और निर्णय लेने की क्षमता से जुड़ा होता है। और इस पर सबसे बड़ा प्रभाव डालता है – सामाजिक दबाव।


आखिर सामाजिक दबाव है क्या?

सामाजिक दबाव (Social Pressure) उस अदृश्य शक्ति का नाम है जो हमें समाज की "उम्मीदों" और "मानकों" के अनुसार जीने को मजबूर करता है। यह दबाव कई रूपों में हो सकता है:


* अच्छे अंक लाने का दबाव

* सफल” करियर चुनने का दबाव

* शादी या जीवनशैली को लेकर समाज की अपेक्षाएँ

* सोशल मीडिया पर "परफेक्ट" ज़िंदगी दिखाने की होड़

यह दबाव धीरे-धीरे हमारे आत्मसम्मान और मानसिक शांति को खा जाता है।


और इस दबाव का मानसिक स्वास्थ्य पर कई प्रकार से प्रभाव पड़ता है जैसे :- 

* तनाव और चिंता (Stress & Anxiety):

लगातार तुलना और असफलता का डर व्यक्ति को चिंतित बना देता है।


* अवसाद (Depression):

जब हम अपनी असल पहचान खो बैठते हैं और हमेशा दूसरों को खुश करने की कोशिश करते हैं, तो यह हमें अंदर से खोखला कर देता है।


* खुद पर शक (Self-doubt):

"क्या मैं पर्याप्त अच्छा हूं?" जैसे सवाल मन में घर कर जाते हैं।


* एकाकीपन (Loneliness):

लोग भीड़ में होते हुए भी खुद को अकेला महसूस करते हैं, क्योंकि वे अपने असली रूप में नहीं जी पा रहे।


ऐसा नहीं है कि इन समस्याओ का कोई  समाधान नहीं है समाधान है इनका जैसे कि :- 

स्वीकृति (Acceptance):-

सबसे पहले खुद को स्वीकार करें। हर इंसान की यात्रा अलग होती है।


खुले दिल से संवाद करें (Open Conversations):-

अपनी भावनाओं को छुपाने की बजाय किसी भरोसेमंद व्यक्ति से साझा करें।


सोशल मीडिया डिटॉक्स करें:-

कभी-कभी ज़रूरी होता है "ऑफलाइन" होकर खुद से जुड़ना।


थेरेपी या काउंसलिंग लें:-

मानसिक चिकित्सक से मदद लेना कमज़ोरी नहीं, समझदारी है।

    सबसे जरूरी बात यह है कि हमें मानसिक स्वास्थ्य को उसी तरह महत्व देंना चाहिए जैसे हम शरीर को देते  हैं।

      अंत में निष्कर्ष यही है कि आज हम एक ऐसे दौर में जी रहे हैं जहाँ बाहरी चमक बहुत दिखती है, पर भीतर की सच्चाई अक्सर छुप जाती है। सामाजिक दबाव जितना चमकदार दिखता है, उतना ही घातक हो सकता है। इसलिए ज़रूरी है कि हम मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें और एक ऐसा समाज बनाएं जहाँ लोग अपनी सच्ची पहचान के साथ जी सकें, ना कि दूसरों की अपेक्षाओं के बोझ तले।


आपका मन भी शरीर की तरह देखभाल माँगता है — उसे नज़रअंदाज़ न करें।


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