नमस्कार साथियों,
आज मैं अपना लेख इसी विषय पर लिख रही हूं। मनुष्य को सामाजिक प्राणी कहा गया है। इसका अर्थ यह है कि वह समाज में रहने लायक है, समाज का ध्यान रखने लायक है। अब मैं आपको दो फोटो दिखाउंगी आप देखकर खुद फैसला करें कि वाकई मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं:-

मानती हूं कि यह दोनों फोटो बहुत ही अजीब हैं। आप भी सोच रहें होंगे कि मैं किस विषय के बारे में लिखना चाहती हूं। आज मैं इसी विषय में अपने कुछ विचार पेश करना चाहती हूं। यह सच है कि यह हमारे समाज की एक तस्वीर है। जहां यह मूलभूत बातें भी दीवारों व साव्रजनिक स्थानों पर लिख कर बतानी पड़ती है। एक सामाजिक प्राणी होने के नाते हर इंसान की यह duty बनती है कि वह साफ-सफाई का ध्यान रखें। पर बहुत से लोग, मैं सब लोगों की बात नहीं कर रही, इन सब बातों का ध्यान नहीं रखते। जिस कारण गंदगी फैलती है।
यहां तो लोगों को बिल्कुल शरम नहीं आती। जहां मन करता है थूक देते हैं , जहां मन करता है कोने में खड़े होकर पेशाब कर देते हैं। मैंने क्या आप लोगों ने भी इन सब बातों का अनुभव किया होगा। चलती सड़क हो, फ्लाईओवर हो, जहां भी मन करता हैं शुरू हो जाते हैं। एक तो पान व तंबाकू खाने वाले जहां देखो वहीं थूक कर चल पड़ते हैं।
अब लोगों में थोड़ी जागरूकता आई है नहीं तो बसों में, रेलों, में जगह-जगह पान की पीक नजर आती रहती थी। आप कभी highway पर जाओ रास्तों में जो restaurants, petrol pump,व ढाबे आते हैं। बहुत ही अच्छे होते हैं परन्तु उनके शौचालय इतने गंदे होते है। कि पूछो नहीं लोग इतना गंद मचाकर जाते है कि हद है। इसमें अगर उनके मालिकों की गलती निकाले तो यह सरासर गलत होगा। क्योंकि यहां गलती केवल शौचालय प्रयोग करने वाले की है। मान लो वहां पानी की व्यवस्था नहीं हैं तो आप खुद व्यवस्था करके चलों न की गंद फैलाया और दूसरों के लिए छोड़ गये।
ऐसा क्यों है कि हमें यह बातें भी TV पर Ads के जरिए समझानी पड़ती हैं यहां हमारे बड़े-बड़े कलाकारों को(विधा बालान, अमिताभ बच्चन) जी को special ads
बनाकर लोगों को समझाना पड़ता है कि"खुले में शौच न करें" और तो और इस विषय पर एक फिल्म Toilet भी बन चुकी है। हम जब छोटे थे तो हमारे सर कहते थे कि यहां के लोग कितने अजीब है जिन्हें ads के ज़रीए बताना पड़ता है कि शौच के बाद हाथ साबुन से साफ करो। कितने शरम की बात हैं।
एक छोटी सी बात मैं आपको बताना चाहती हूं मेरे घर दो बिल्लियां आती हैं एक बड़ी है और एक छोटी। पता है आपको जब कभी भी वह घर के अंदर किसी कारणवश urine or potty कर देती हैं तो वह अपने छोटे-छोटे पंजों से मिटटी खरोंचती हैं ताकि जो गंद उन्होनें मचाया है उसे ढक जाए। यह उन्हें किसने सिखाया, किसी ने नहीं। यह उनके अंदर ही होता हैं।
लेकिन हम मनुष्य जो उनसे लाख गुना समझदार होते हुए भी गंद फैलाते है। बाहर के देशों में कितनी साफ-सफाई होती है। क्योंकि उन देशों में इनके लिए कड़े कानून बने हुए हैं , लोगों को गलती करने पर जुम्राने भरने पड़ते हैं। यहां भी ऐसे कानून बनने चाहिए।
और सबसे बड़ी बात लोगों के अंदर अपने आप साफ-सफाई की भावना होनी चाहिए। आज सरकार ने जगह-जह पर सुलभ शौचालय बनाये हुए है उनका प्रयोग करें। और अगर कहीं यह सुविधा उपलब्ध है तो उसका सफाई से प्रयोग करें।
क्योंकि जब एक जानवर सफाई से रह सकता है तो हम मनुष्य तो उनसे लाखों गुना समझदार है।
आज मैं अपना लेख इसी विषय पर लिख रही हूं। मनुष्य को सामाजिक प्राणी कहा गया है। इसका अर्थ यह है कि वह समाज में रहने लायक है, समाज का ध्यान रखने लायक है। अब मैं आपको दो फोटो दिखाउंगी आप देखकर खुद फैसला करें कि वाकई मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं:-

मानती हूं कि यह दोनों फोटो बहुत ही अजीब हैं। आप भी सोच रहें होंगे कि मैं किस विषय के बारे में लिखना चाहती हूं। आज मैं इसी विषय में अपने कुछ विचार पेश करना चाहती हूं। यह सच है कि यह हमारे समाज की एक तस्वीर है। जहां यह मूलभूत बातें भी दीवारों व साव्रजनिक स्थानों पर लिख कर बतानी पड़ती है। एक सामाजिक प्राणी होने के नाते हर इंसान की यह duty बनती है कि वह साफ-सफाई का ध्यान रखें। पर बहुत से लोग, मैं सब लोगों की बात नहीं कर रही, इन सब बातों का ध्यान नहीं रखते। जिस कारण गंदगी फैलती है।
यहां तो लोगों को बिल्कुल शरम नहीं आती। जहां मन करता है थूक देते हैं , जहां मन करता है कोने में खड़े होकर पेशाब कर देते हैं। मैंने क्या आप लोगों ने भी इन सब बातों का अनुभव किया होगा। चलती सड़क हो, फ्लाईओवर हो, जहां भी मन करता हैं शुरू हो जाते हैं। एक तो पान व तंबाकू खाने वाले जहां देखो वहीं थूक कर चल पड़ते हैं।
अब लोगों में थोड़ी जागरूकता आई है नहीं तो बसों में, रेलों, में जगह-जगह पान की पीक नजर आती रहती थी। आप कभी highway पर जाओ रास्तों में जो restaurants, petrol pump,व ढाबे आते हैं। बहुत ही अच्छे होते हैं परन्तु उनके शौचालय इतने गंदे होते है। कि पूछो नहीं लोग इतना गंद मचाकर जाते है कि हद है। इसमें अगर उनके मालिकों की गलती निकाले तो यह सरासर गलत होगा। क्योंकि यहां गलती केवल शौचालय प्रयोग करने वाले की है। मान लो वहां पानी की व्यवस्था नहीं हैं तो आप खुद व्यवस्था करके चलों न की गंद फैलाया और दूसरों के लिए छोड़ गये।
ऐसा क्यों है कि हमें यह बातें भी TV पर Ads के जरिए समझानी पड़ती हैं यहां हमारे बड़े-बड़े कलाकारों को(विधा बालान, अमिताभ बच्चन) जी को special ads
बनाकर लोगों को समझाना पड़ता है कि"खुले में शौच न करें" और तो और इस विषय पर एक फिल्म Toilet भी बन चुकी है। हम जब छोटे थे तो हमारे सर कहते थे कि यहां के लोग कितने अजीब है जिन्हें ads के ज़रीए बताना पड़ता है कि शौच के बाद हाथ साबुन से साफ करो। कितने शरम की बात हैं।
एक छोटी सी बात मैं आपको बताना चाहती हूं मेरे घर दो बिल्लियां आती हैं एक बड़ी है और एक छोटी। पता है आपको जब कभी भी वह घर के अंदर किसी कारणवश urine or potty कर देती हैं तो वह अपने छोटे-छोटे पंजों से मिटटी खरोंचती हैं ताकि जो गंद उन्होनें मचाया है उसे ढक जाए। यह उन्हें किसने सिखाया, किसी ने नहीं। यह उनके अंदर ही होता हैं।
लेकिन हम मनुष्य जो उनसे लाख गुना समझदार होते हुए भी गंद फैलाते है। बाहर के देशों में कितनी साफ-सफाई होती है। क्योंकि उन देशों में इनके लिए कड़े कानून बने हुए हैं , लोगों को गलती करने पर जुम्राने भरने पड़ते हैं। यहां भी ऐसे कानून बनने चाहिए।
और सबसे बड़ी बात लोगों के अंदर अपने आप साफ-सफाई की भावना होनी चाहिए। आज सरकार ने जगह-जह पर सुलभ शौचालय बनाये हुए है उनका प्रयोग करें। और अगर कहीं यह सुविधा उपलब्ध है तो उसका सफाई से प्रयोग करें।
क्योंकि जब एक जानवर सफाई से रह सकता है तो हम मनुष्य तो उनसे लाखों गुना समझदार है।
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