नमस्कार साथियों
आज के लेख में, मैं दिल और दिमाग की लड़ाई के बारे में लिख रही हूं। यह जो स्थिति है इसका सामना हर किसी को करना पडता है। फिर चाहे एक छोटी सी चीज लेनी हो या बङा निर्णय करना हो। यह दोनों आपस में बहुत भिङते है कभी दिल जीतता है, तो कभी दिमाग।
जैसा कि आप सब जानते है कि यह दोनों ही हमारे लिए महत्वपूर्ण है। इन दोनों के द्वारा लिए गए निर्णयों से हमारा जीवन व शरीर चलता है।
जहां दिल एक छोटे, जिद्दी और अल्हड बच्चे की तरह व्यवहार करता है, वहीं दिमाग एक बङे बुर्जुग समझदार की भुमिका निभाता है।
यहां यह बात भी सर्वमान्य है कि दिल के बजाय अगर दिमाग की बात मानी जाए तो वह अधिकतर सही होती है। क्योंकि दिल की मानी बात अधिकतर एक मीठी चाकलेट की तरह होती है जो बहुत अच्छी लगती है चाहे वो नुकसान दें।
जबकि दिमाग की बात (हर बार नहीं) एक कङवी दवाई की तरह होती है जो आगे जाकर फायदेमंद ही होती हैं। इसके कई सारे उदाहरण है जहां दिमाग की बजाए दिल की बात मानकर नुकसान उठाना पङता है। और यह हम सबके साथ कभी न कभी होता हैं।
उदाहरण के लिए रावण, कंस और द्रुयोधन जिनका दिमाग जानता था कि वह कितनी बङी गलती कर रहे है परन्तु अपनी दिल की मानकर उन्होंनें कितना नुकसान उठाया। यह तो पुरानी बातें है और सीख भी है कि हमेशा दिल सही नहीं होता बल्कि हर काम दिमाग से सोच-समझकर करना चाहिए।
अब आते है अपने ऊपर, आज भी ऐसा ही होता है हमारा दिमाग जानता है कि हम गलत कर रहे है पर अपने दिल की मानकर हम गलत कर ही देते हैं। जैसे कि आजकल हर कोई किसी न किसी बिमारी से जूझ रहा है, हजारो परहेज है पर हम सब अपने दिल की मानकर गलत कर ही लेते हैं। आज का युवा जल्दबाजी में आकर या जो दिल को भाता है वही करते है और फिर पछताते है। ऐसा नहीं है कि हमारा दिमाग हमें आगाह नहीं करता वो बार-बार चेतावनी देता है।
इसका भी समाधान है कि अगर हम कोई भी फैसला लेने से पहले 10 से 15 मिनट अच्छे से विचार कर लें तो सही तरीके से सोच-समझकर काम कर सकते हैं। क्योंकि फैसले आवेश में नहीं बल्कि दिमाग से लेने चाहिए।
अब अंत में, मैं आपसे जानना चाहूंगी कि आप कैसे फैसला लेते है। और क्या परेशानी face करते हैं कमेंट बॉक्स में कमेंट करके जरूर बताए।
धन्यवाद