शनिवार की शाम थी। बारिश थम चुकी थी और हवा में अजीब-सी नमी थी। आरव अपनी पढ़ाई के सिलसिले में एक छोटे से कस्बे के हॉस्टल में रहने आया था। हॉस्टल पुराना था, लेकिन साफ़-सुथरा और शांत।
सब कुछ सामान्य था, बस एक बात अजीब थी।
हर रात ठीक 12:12 बजे हॉस्टल की सबसे आख़िरी मंज़िल से एक घंटी की आवाज़ आती थी।
आरव ने पहले इसे नज़रअंदाज़ किया। उसे लगा शायद मंदिर की घंटी होगी या किसी की शरारत। लेकिन जब उसने ध्यान दिया तो पाया—घंटी हमेशा एक ही बार बजती थी, न ज़्यादा, न कम।
एक रात उसने अपने रूममेट से पूछा।
वह थोड़ा घबराया और बोला,
“ऊपर वाली मंज़िल पर कोई नहीं रहता… और वहाँ कोई घंटी भी नहीं है।”
यह सुनकर आरव बेचैन हो गया।
अगली रात 12 बजे वह जागता रहा। घड़ी में 12:12 होते ही वही आवाज़ आई—
टन्न…
आरव ने हिम्मत जुटाई और सीढ़ियाँ चढ़ने लगा। ऊपर का फ़्लोर अंधेरे में डूबा था। धूल जमी हुई थी, जैसे वहाँ सालों से कोई गया ही न हो।
तभी उसे दीवार पर एक पुरानी पट्टिका दिखी—
“यहाँ प्रवेश वर्जित है”
उसी समय उसे ज़मीन पर एक टूटी हुई घंटी दिखाई दी।
अचानक उसे एहसास हुआ—
अगर घंटी टूटी है, तो आवाज़ कैसे आ रही है?
डर के बावजूद उसने वहाँ पड़े एक पुराने रजिस्टर को उठाया। उसमें लिखा था कि कई साल पहले एक छात्र की सीढ़ियों से गिरकर मौत हो गई थी। मरने से ठीक पहले वह मदद के लिए घंटी बजाने की कोशिश कर रहा था।
लेकिन उसकी आवाज़ कोई नहीं सुन पाया।
आरव के हाथ काँपने लगे।
अगली रात उसने हिम्मत कर ज़ोर से कहा,
“अगर तुम्हें इंसाफ़ चाहिए… तो मुझे इशारा दो।”
ठीक 12:12 पर घंटी बजी…
और उसी पल रजिस्टर का एक पन्ना अपने आप खुल गया।
उस पन्ने पर लिखा था—
“यह हादसा नहीं था।”
आरव ने वह रजिस्टर प्रशासन को दे दिया। जाँच शुरू हुई और सच सामने आया—वह छात्र धक्का देकर गिराया गया था।
दोषी को सज़ा मिली।
उस रात के बाद
घंटी की आवाज़ कभी नहीं आई।
लेकिन आरव आज भी जब शनिवार की रात घड़ी देखता है
और समय 12:12 होता है…
तो उसके कान अपने आप सतर्क हो जाते हैं।

Interesting story❤️
ReplyDeleteVery good
ReplyDeleteWaaah mummy❤️
ReplyDeleteMaza aagya
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